वीर भगत सिंह
अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को अपने साहस से झकझोरा था,
आजादी की अलख जगा गुलामी की जंजीरोंको तोड़ा था।
निष्ठुर आलोचना स्वतंत्र विचार यही क्रांतिकारी की पहचान,
जय हो तेरी वीर भगत सिंह भारत को है आप- पर अभिमान।
क्रांति की तलवार होती विचारों की शान पर तेज,
इस संकल्पना को जो करे साकार वही तो है विशेष।
भगत सिंह जैसे कंत को जन्म दिया धन्य थी वो माई,
विचलित होते गोरे कहते देखो सिंहनी आई।
जन्म लेकर इस पुनीत धरा पर अपना फ़र्ज़ निभाकर,
झूल गए फाँसी के फंदे पर स्वतंत्रताकी अलख जगा कर।
चले जब अपनी अंतिम यात्रा पर
पहन बसंती चोला,
हिन्दुस्तान में मानो लगा था आकर्षक मेला।
माँ रोई, भारत माँ रोई थी, रोया जगत का रोम-रोम,
धरती रोई, गगन रोया प्रतिध्वनि करता रोया व्योम।
23 वर्ष की उम्र में भगतसिंह मातृवेदी पर अर्पित हो गए,
अलविदा कह इस दुनिया को आज़ादी की अनमोल धरोहर दे गए।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® आलोक पांडेय
गरोठ, मंंदसौर, (मध्यप्रदेश)