वीर पुरूष की वीर नार
उन आँशुओ से समंदर भी हारा
गले से मंगलसूत्र जब तुमने उतारा
न कभी मानी जीवन से यह हार
तुम वीर पुरुष की वीर नार ।
तुम वीरो की प्रण मूर्ति
अमन चैन की स्फूर्ति
अधीर है तेरा मुल्क में उपकार
तुम वीर पुरूष की वीर नार ।
एक पिता ने उसके लिए भेजा,
बनाया तुझे हर दिल का कलेजा।
बंधा जीवन का बड़ा सा सार
तुम वीर पुरुष की वीर नार ।
अपने सुहागन को सीमा पर
आंतकियो को बड़ा चेताया
घर से पत्र भेजकर बड़े संघर्ष में
देश सेवा में हिम्मत से बंधवाया ।
विजय रथ में न कभी लाचार
तुम वीर पुरुष की वीर नार।
जब तक सांस थी तब तक
तुम्हारे दीपक की आधार थी
डेहरी पर आया जब कफन
बुझ गया दीपक सुख गया तपन
मच गया परिवार मे हाहाःकार
तुम वीर पुरुष की वार नार।
रोते बिखलते बच्चो को न कभी
यह अहसास करवाया ,,
तेरे पिता शहादत पर जान
गंवाया
निभाया तुमने देश गृहस्थी का
किरदार
तुम वीर पुरुष की वीर नार।
भावो की गठरी को ह्रदय में
उतारा
मन ,सन्ताप से हुआ उद्धार
तुम वीर पुरुष की वीर नार।
तूम चालीस मुंड के बदले सो मुंड
लेगी ,,
तभी यह आंतकियो की होली
जलेगी ।
कर दिया अपने पति का बलिदान
तुम चंचल बहती नदी की धार
तुम वीर पुरुष की वीर नार ।
✍प्रवीण शर्मा ताल
तहसील ताल
जिला रतलाम
स्वरचित मौलिक रचना