वीर-जवान
जब भी आया देश में,आतंकी तूफान।
माँ की रक्षा के लिए,हुए वीर कुर्बान।।
रणभेरी बजते उठे,मोह निद्रा को त्याग।
चले वीर सन-सन करें, देश-भक्ति की आग।।
“भारत ही सर्वस्व मम”,कहकर चले सपूत।
दैत्यों का दिल हिल गया,खड़ा देख यमदूत।।
अमर मृत्यु को हाथ ले,कर्तव्यों को साज।
चले अग्नि के पंथ पर, पथिक वीर जाँबाज़।।
शीश हथेली पर लिये,चले वीर हनुमान।
रावण की लंका जली,पौरुष पुरुष महान।।
परशुराम का है परशु,रघुनंदन का वाण।
लेकर अर्जुन का धनुष,हरते रिपु का प्राण।
रण के कंकण को पहन,बाँध कफन को शीश ।
रक्त भक्त के लाडले,चक्रधारी जगदीश।।
शीश चढ़ाने को प्रथम,सौ शेरों के शेर।
मरने की हठ ठान कर,किया शत्रु को ढ़ेर।।
खड़ा सामने चीन हो,चाहे पाकिस्तान।
रिपु का सीना चीर कर, किया रक्त का पान।।
-लक्ष्मी सिंह