Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jun 2021 · 8 min read

वीर कुँअर सिंह पर कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की कविता

कई बातें अनुत्तरित है अभी भी ! क्या हम ‘कुँवर सिंह’ को ‘वीर’ के रूप में याद करें या ‘बाबू’ के रूप में याद करें? क्या ‘स्वतंत्रता सेनानी’ के रूप में याद करें? क्या ‘बड़े जमींदार’ के रूप में याद करें? उनकी अवस्था जब 80 वर्ष की थी और तब उन्हें लगा, अंग्रेज उनकी जमींदारी और रियासत को छीन लेगा, तब वे अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिये ! अमर शहीद कुँवर सिंह पर कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह ने कालजयी कविता रचे हैं, द्रष्टव्य-

“मस्ती की थी छिड़ी रागिनी, आजादी का गाना था।
भारत के कोने-कोने में, होगा यह बताया था ॥
उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई, और पेशवा नाना था।
इधर बिहारी वीर बाँकुरा, खड़ा हुआ मस्ताना था ॥
अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

नस-नस में उज्जैन वंश का बहता रक्त पुराना था।
भोजराज का वंशज था, उसका भी राजघराना था।
बालपने से ही शिकार में उसका विकट निशाना था।
गोला-गोली, तेग-कटारी यही वीर का बना था।
उसी नींव पर युद्ध बुढ़ापे में भी उसने ठाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था॥

रामानुज जग जान, लखन ज्यों उनके सदा सहायी थे।
गोकुल में बलदाऊ के प्रिय जैसे कुंवर कन्हाई थे।
वीर श्रेष्ठ आल्हा के प्यारे ऊदल ज्यों सुखदायी थे।
अमर सिंह भी कुंवर सिंह के वैसे ही प्रिय भाई थे।
कुंवर सिंह का छोटा भाई वैसा ही मस्ताना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

देश-देश में व्याप्त चहुँ दिशि उसकी सुयश कहानी थी।
उसके दया-धर्म की गाथा सबको याद जबानी थी॥
रूबेला था बदन और उसकी चौड़ी पेशानी थी।
जग-जाहिर जगदीशपुर में उसकी प्रिय रजधानी थी॥
वहीं कचहरी थी ऑफिस था, वहीं कुंवर का थाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

बचपन बीता खेल-कूद में और जवानी उद्यम में।
धीरे-धीरे कुंवर सिंह भी आ पहुँचे चौथेपन में॥
उसी समय घटना कुछ ऐसी घटी देश के जीवन में।
फैल गया विद्वेष फिरंगी के प्रति सहसा सबके मन में॥
खौल उठा सन सत्तावन में सबका खून पुराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

बंगाल के बैरकपुर ने आग द्रोह की सुलगाई।
लपटें उसकी उठी जोर से दिल्ली औ’ मेरठ धाई॥
काशी उठी लखनऊ जागा धूम ग्वालियर में छाई।
कानपुर में और प्रयाग में खड़े हो गए बलवा।
रणचंडी हुंकार कर उठी शत्रु हृदय थर्राना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

सुनकर के आह्वान, समर में कूद पड़ी लक्ष्मीबाई।
स्वतंत्रता की ध्वजा पेशवा ने बिठूर में फहराई।
खोई दिल्ली फिर कुछ दिन को वापस मुगलों ने पाई।
थर-थर करने लगे फिरंगी उनके सिर शामत आई॥
काँप उठे अंग्रेज कहीं भी उनका नहीं ठिकाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आग क्रांति की धधक उठी, पहुँची पटने में चिनगारी।
रणोन्मत्त योद्धा भी करने लगे युद्ध की तैयारी॥
चंद्रगुप्त के वंशज जागे करने माँ की रखवारी।
शेरशाह का खून लगा करने तेजी से रफ्तारी॥
पीर अली फाँसी पर लटका, वीर बहादुर दाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

पटने का अंग्रेज कमिश्नर टेलर जी में घबराया।
चिट्ठी भेज जमींदारों को उसने घर पर बुलवाया ।
बुद्धि भ्रष्ट थी हुई और आँखों पर था परदा छाया।
कितनों ही को जेल दिया और फाँसी पर भी लटकाया॥
कुंवर सिंह के नाम किया उसने जारी परवाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

कुंवर सिंह ने सोचा जब उनके मुंशी की हुई तलाश।
दगाबाज अब हुए फिरंगी इनका जरा नहीं विश्वास ॥
उसी समय पहुँचे विद्रोही दानापुर से उनके पास।
हाथ जोड़कर बोले वे सरकार आपकी ही है आस
सिंहनाद कर उठा केसरी उसे समर में जाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ।

गंगा तट पर अर्धरात्रि को हुई लड़ाई जोरों से।
रणोन्मत्त हो देसी सैनिक उलझ पड़े जब गोरों से॥
शून्य दिशाएँ काँप उठी तब बंदूकों के शोरों से।
लेकिन टिके न गोरे भागे प्राण बचाकर चोरों से॥
कुछ क्षण में अंग्रेज फौज का वहाँ न शेष निशाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आरा पर तब हुई चढ़ाई, हुआ कचहरी पर अधिकार।
फैल गया तब देश-देश में कुंवर सिंह का जय-जयकार॥
लोप हो गई तब आरा से बिलकुल अंग्रेजी सरकार।
नहीं जरा भी होने पाया मगर किसी पर अत्याचार ।।
भाग छिपे अंग्रेज किले में, सब लुट चुका खजाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

खबर मिली आरा की तो, आयर बक्सर से चढ़ धाया।
विकट तोपखाना था, सँग में फौजें था काफी लाया ॥
देशद्रोहियों का भी भारी दल था उसके संग आया।
कब तक टिकते कुंवर सिंह आरे से उखड़ गया पाया।
अपने ही जब बेगाने थे, उलटा हुआ जमाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था॥

हुआ युद्ध जगदीशपुर में मचा वहाँ पूरा घमासान।
अमर सिंह का तेज देखकर दुश्मन दल भी था हैरान ॥
महाराज डुमराव वहीं थे, ज्यों मुगलों में राजा मान।
अमर सिंह झपटा तेजी से लेकर उन पर नग्न कृपाण॥
झपटा जैसे मानसिंह पर वह प्रताप सिंह राणा था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ।

हौदे में थे महाराज, पड़ गई तेग की खाली वार।
नाक कट गई पीलवान की हाथी भाग चला बाजार ॥
अमर सिंह भी बीच सैन्य से निकल गया सबको ललकार।
दादाजी थे चले गए, फिर लड़ने की थी क्या दरकार।
पड़ा हुआ था शून्य महल, जगदीशपुर अब वीराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

राजा कुंवर सिंह जा पहुंचे, अतरौलिया के मैदान
आ पहुँचे अंग्रेज उधर से, हुआ परस्पर युद्ध महान॥
हटा वीर कुछ कौशलपूर्वक, झपट पड़ा फिर बाज समान।
भाग चले मिलमैन बहादुर बैल-शकट पर लेकर प्राण ॥
आकर छिपे किले के अंदर, उनको प्राण बचाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

विजय राज कुंवर सिंह जो आजमगढ़ पर चढ़ गया।
कर्नल डेम्स फौज ले सँग में, उससे लड़ने को आया।
किंतु कुंवर सिंह के साथ तनिक भी नहीं समझ में टिक पाया।
भागा वह भी गढ़ के अंदर, करके प्राणों की माया॥
आजमगढ़ में कुंवर सिंह का फहरा उठा निशाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

चले बनारस, तब कैनिंग के जी में घबराहट छाई।
अस्सी वर्षों के इस बूढ़े ने अजीब आफत ढाई॥
लॉर्ड मार्क के संग फौजें सन्मुख समझ में आई।
किंतु नहीं टिक सकीं देर तक उनने भी मुँह की खाई॥
छिपा दुर्ग में सेनापति, उसका भी वहीं ठिकाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आगे बढ़ते चले कुँअर, था ध्यान लगा झाँसी की ओर।
सुनी मृत्यु लक्ष्मीबाई की लौट पड़े तब बढ़ना छोड़॥
पीछे से पहुँचा लगर्ड, थी लगी प्राण की मानो होड़।
गाजीपुर के पास पहुँचकर, हुआ युद्ध पूरा घनघोर॥
विजय हाथ था कुंवर सिंह के किसको प्राण गँवाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

डगलस आकर जुटा उधर से, लेकर के सेना भरपूर।
शत्रु सैन्य था प्रबल और सब ओर घिर गया था वह शर॥
लगातार थी लड़ी लड़ाई थे थककर सब सैनिक चूर।
चकमा देकर चला बहादुर, दुश्मन दल था पीछे दूर ।।
पहुँची सेना गंगा तट उस पार नाव से जाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बडा वीर मर्दाना था ॥

दुश्मन तट पर पहुँच गए जब कुंवर सिंह करते थे पार।
गोली आकर लगी बाँह में दायाँ हाथ हुआ बेकार।
हुई अपावन बाहु जान बस, काट दिया लेकर तलवार।
ले गंगे, यह हाथ आज तुझको ही देता हूँ उपहार॥
वीर मात का वही जाह्नवी को मानो नजराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

इस प्रकार कर चकित शत्रु दल, कुंवर सिंह फिर घर आए।
फहरा उठी पताका गढ़ पर दुश्मन बेहद घबराए॥
फौज लिये लीग्रैंड चले, पर वे भी जीत नहीं पाए।
विजयी थे फिर कुंवर सिंह अंग्रेज काम रण में आए ।
घायल था वह वीर किंतु आसान न उसे हराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

यही कुंवर सिंह की अंतिम विजय थी और यही अंतिम संग्राम।
आठ महीने लड़ा शत्रु से बिना किए कुछ भी विश्राम॥
घायल था वह वृद्ध केसरी, थी सब शक्ति हुई बेकाम।
अधिक नहीं टिक सका और वह वीर चला थककर सुरधाम।॥
तब भी फहरा दुर्ग पर उसका विजय निशाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

बाद मृत्यु के अंग्रेजों की फौज वहाँ गढ़ पर आई।
कोई नहीं वहाँ था, थी महलों में निर्जनता छाई॥
किंतु शत्रु ने शून्य भवन पर भी प्रतिहिंसा दिखलाई।
देवालय विध्वंस किया और देव-मूर्तियाँ गिरवाई॥
दुश्मन दल की दानवता का कुछ भी नहीं ठिकाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥”

पत्रकार और लेखक ब्रज किशोर सिंह के अनुसार- “अमर शहीद कुंवर सिंह (जन्म तिथि 23 अप्रैल 1777) सन 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीद सेनानी और अमर महानायक थे। उन पर प्रमुख कविता प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिंह ने ‘वीर कुंवर सिंह’ शीर्षक से लिखा था। जब यह कविता 1929 में रामवृक्ष बेनीपुरी के संपादन में निकलने वाली ‘युवक’ में छपी, तो ब्रिटिश सरकार ने इसे तत्काल प्रतिबंधित कर दिया। इस कविता का सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक कविता से बहुत हद तक साम्य है। ‘सब कहते हैं, कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था’ की पंक्तियां व परिच्छेद भी ‘खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी’ की तरह ही है, परंतु इस कविता को वह लोकप्रियता न मिली, संभवत: इसका कारण इसका प्रतिबंधित हो जाना रहा हो। वीर कुंवर सिंह को वह लोकप्रियता भी न मिली, जिसके वे हकदार थे। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झाँसी की रानी’ कविता संभवत: 1930 में उनके काव्य संग्रह ‘मुकुल’ में प्रकाशित हुई थी, किन्तु इस आधार पर यह मान लेना कि सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झाँसी की रानी’ कविता मनोरंजन प्रसाद सिंह की कविता ‘वीर कुँवर सिंह’ से ही प्रभावित थी ! एक संभावना यह भी है कि सुभद्रा कुमारी चौहान ने कविता पहले ही लिख ली हो, वे लोकप्रिय भी हो गई हों, क्योंकि कवयित्री स्वयं भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थी।”

अगर कुँवर सिंह 30 वर्ष की आयु में ही हथियार उठाए होते, तो आज़ादी बहुत पहले मिल सकती थी ! किन्तु हम यह भी तो सोच सकते हैं कि युवाओं की अकर्मण्यता के कारण ही उन्हें वयोवृद्धावस्था में हथियार उठाने पड़े ! भले ही वे प्रथमतः अपनी जमींदारी बचाने को लेकर इस अवसर को ‘राष्ट्रीय फ़्रेम’ में रखकर ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ में वयोवृद्ध अवस्था में कूदने से जहाँ युवाओं को प्रेरणा मिली !

जिनके किस्से बच्चे या जवान क्या ? वृद्धों में भी शक्ति और ऊर्जा का नव संचार कर दे, उनमें स्फूर्ति भर दे । आज़ादी के ऐसे दीवाने, भारत और बिहार के ऐसे जमींदार, जो अंग्रेजों के विरुद्ध 80 वर्ष की अवस्था में भी ज़मींदारी त्यागते हुए हल्ला बोल दिए।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 1 Comment · 865 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"अकेले रहना"
Dr. Kishan tandon kranti
जख्मो से भी हमारा रिश्ता इस तरह पुराना था
जख्मो से भी हमारा रिश्ता इस तरह पुराना था
कवि दीपक बवेजा
जनवासा अब है कहाँ,अब है कहाँ बरात (कुंडलिया)
जनवासा अब है कहाँ,अब है कहाँ बरात (कुंडलिया)
Ravi Prakash
💐💞💐
💐💞💐
शेखर सिंह
ये जीवन अनमोल है बंदे,
ये जीवन अनमोल है बंदे,
Ajit Kumar "Karn"
फिर कैसे विश्राम हो कोई ?
फिर कैसे विश्राम हो कोई ?
AJAY AMITABH SUMAN
नेता जब से बोलने लगे सच
नेता जब से बोलने लगे सच
Dhirendra Singh
देख इंसान कहाँ खड़ा है तू
देख इंसान कहाँ खड़ा है तू
Adha Deshwal
उसे खो देने का डर रोज डराता था,
उसे खो देने का डर रोज डराता था,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
वर्तमान
वर्तमान
Kshma Urmila
वक्त
वक्त
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उसने आंखों में
उसने आंखों में
Dr fauzia Naseem shad
Health, is more important than
Health, is more important than
पूर्वार्थ
होली के मजे अब कुछ खास नही
होली के मजे अब कुछ खास नही
Rituraj shivem verma
वक़्त
वक़्त
विजय कुमार अग्रवाल
जागता हूँ क्यों ऐसे मैं रातभर
जागता हूँ क्यों ऐसे मैं रातभर
gurudeenverma198
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
एक कुण्डलियां छंद-
एक कुण्डलियां छंद-
Vijay kumar Pandey
नित्य अमियरस पान करता हूँ।
नित्य अमियरस पान करता हूँ।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
बाल कहानी विशेषांक
बाल कहानी विशेषांक
Harminder Kaur
आत्मबल
आत्मबल
Shashi Mahajan
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
जरूरी नहीं जिसका चेहरा खूबसूरत हो
जरूरी नहीं जिसका चेहरा खूबसूरत हो
Ranjeet kumar patre
ज़िंदगी - एक सवाल
ज़िंदगी - एक सवाल
Shyam Sundar Subramanian
ज़िन्दगी के
ज़िन्दगी के
Santosh Shrivastava
सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पतालों की हालत में सुधार किए जाएं
सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पतालों की हालत में सुधार किए जाएं
Sonam Puneet Dubey
रमेशराज के 2 मुक्तक
रमेशराज के 2 मुक्तक
कवि रमेशराज
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
Kanchan Khanna
3307.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3307.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
दो जून की रोटी
दो जून की रोटी
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
Loading...