अशोक महान
थे मौर्य राजवंश के, वीर अशोक महान
सम्पूर्ण विश्व में रही, शान्तिदूत की शान
जनम ‘तीन सौ चार’ में, पाये अशोक लाल
सुभद्रा-बिन्दुसार* के, राजवंश का भाल
‘दो सौ उनहत्तर’ हुआ, शासन ईसा पूर्व
थी ‘दो सौ बत्तीस’ तक, ध्वजा अशोक अपूर्व
उत्तर में था हिन्दु कुश, पूरब में म्यान्मार
तक्षशिला की श्रेणियाँ, अशोक का संसार
दक्षिण में गोदावरी, धोती अशोक ताज
परवत सुवर्णगिरी, मैसूर तलक राज
ज्यों आन्तरिक अशान्ति से, निपटते थे अशोक
सम्मुख नवीन शत्रु त्यों, राहें लेते रोक
युद्ध कलिंगा का हुआ, भीषण-ओ-विकराल
समा गए असमय कई, हाय! काल के गाल
एक लाख सैनिक गए, परलोक को सिधार
डेढ़ लाख घायल हुए, अशोक को धिक्कार
परिवर्तित जबसे हृदय, बदल गया संसार
धर्मात्मा अशोक बने, दया धर्म का सार
चक्रवर्ती अशोक ने, दिया शान्ति पैग़ाम
इस तरह से मिला उसे, देवानांप्रिय** नाम
बौद्ध धर्म विस्तार हित, हुए अशोक महीप***
बढ़ा परस्पर प्रेम यूँ, एशिया महाद्वीप
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*पिता बिन्दुसार / माता सुभद्रांगी (रानी धर्मा)
**देवानांप्रिय अशोक — प्रियदर्शी ‘देवताओं का प्रिय’ अशोक
***सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 269 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। अशोक बौद्ध धर्म के सबसे प्रतापी राजा थे।