वीरान सड़कें
वीरान सड़कों की भी अपनी दास्तानें हुआ करती हैं ,
वो कई राज़ अपने सीने में दफ़्न रक्खा करती हैं ,
वीरान होते हुए भी वो कई आवाज़ें
कई चीखें समेटे रहती हैं ,
वो चुप रह कर कई मंज़र अपनी छाती पे झेलती हैं ,
लोग वीरान सड़कों पे जाने से घबराते हैं
कभी मौत , कभी पैसे तो कभी इज़्ज़त लुटने के डर से ,
इन वीरान सड़कों पर भी जश्न होते हैं
पर ये जश्न भारी पड़ते हैं उनपर
जिनकी आँखों ने कभी कोई जश्न देखा न हो |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’