वीरांगना डा अर्चना शर्मा , तुम्हारा बलिदान बेकार न जायेगा
भीड़ खचाखच मची
प्रसूता थी दर्द में सुती
भीड़ जमाने भर की
कहानी
छोटे से अस्पताल की
गली का रस्ता जाम यहां
बोलेरो, पंच , ऑल्टो
से वाहन वहां
झंडा वाले वाहन
नंबर प्लेट बिना नंबर
लंबरदार लिखा यहां पर
कराहती आवाज
प्रसूता की
घरघराती आवाज
भीड़ की
मरीज के
तीन नाम, तीन लोग बतला
रहे
एक घर का, एक प्यार का
एक ससुराल का, बता
एहसान थे जतला रहे
स्टाफ को धकिया रहे
कुछेक नर्सिंग होम में
अंदर जा जा मंडरा रहे
शोर शराबा आए दिन की बात
महिला डाक्टर अपने केबिन
में मरीजों के साथ
चैंबर से मरीज छोड़ती
स्ट्रेचर को आधा खुद
आधा स्टाफ के जोर से
धकेलती
मरीज , OT को गया
बाहर तीमरदारों का
दरी बिछा भोजन हुआ
सारी व्यवस्था तीतर बितर
सारा स्टाफ अस्पताल भीतर
बार बार कुछ अंदर से
दवाइयां, इंजेक्शन जा रहे थे
घंटे बीतते जा रहे थे
परिजनों को बुलाया गया
गंभीरता को बताया गया
कैसे भी बचा लो ,
नतमस्तक सभी ,
बैचेनी भीड़ में बड़ने लगी
फिर फोन पर फोन की होड़
सी चलने लगी
ऑपरेशन का समय
धीरे धीरे बड़ रहा था
अंदर धर्मयुद्ध सा
चल रहा था
खून किसी कीमत पर
रुकता ही नहीं था
हर रास्ता तलाशा
कुछ भी हासिल
होता नहीं था
खून चढ़ाने, से भी काम
बनता नहीं
पांच छः घंटों में भी
रिजल्ट हासिल होता नहीं
ब्लड प्रेसर उठता ही नहीं
किसी दवा का जोर
चलता नही
हुआ वही जो था मंजूर
कुदरत को
नहीं जीत पाई थी दुर्गा ये रण को
नहीं बचा पाई इस महिला के जीवन
किसी तरह समझाना
घरवालों को सबको
बच्चे को किलकारी भरता
मां को मौन, घर को
एंबुलेंस की व्यवस्था कर दी गई
खिन्नता डाक्टर के चेहरे पर
साफ जाहिर हुई
बाकी बचे बैठे मरीजों को
देख गई
महिला डाक्टर , थकी मांदी
बिना कुछ खाए
शयन को गई
रात को मन में
सन्नाटा घणा
नींद का न आना हुआ
हां हुआ एक शोर नीचे
लोग इक्कठा हो रहे नीचे
हाथ में कद से बड़ी लाठियां
मुस्तंड गुंडों ने था मोर्चा लिया
बाहर बाहर आओ लोग
चिल्ला रहे थे
बंद हॉस्पिटल के गेट पर
पत्थर बरसा रहे थे
एक नेता गांव था पहुंचा
लाश को चिता पर रखने
से पहले उठा यहां लौटा
मौत के व्यापार का
धंधा यहां था
रोज मांगता चंदा यहां था
इंकलाब का युग आया जैसे
क्रांति का पुंज ठुल्ला लाया जैसे
भीड़ बढ़ती जा रही थी
पुलिस बुलाने पर भी ना
आ रही थी
एक अस्पताल छोटा सा
बंधक बना था
डर से भयभीत डाक्टर जोड़ा
दो बच्चो के साथ
सहमा पड़ा था
डाक्टर ने क्या न जतन
बचाने को किए
मेहनत मजदूरी से
घंटो एक थे किए
जल्द जल्लाद घोषित हो गए
उनकी सजाओं के फतवे भी जारी
हो गए
हाथ में लोहे की रोड, बहुत से लिए थे
नेता वाली आत्मा के हाथों में
सोने के कड़े थे
हुंकार से उसके अस्पताल कांपता
था
जो भी सामने उसके निकलता
निर्लिप्त भाव धारता था
जीप पुलिस की आ गई
आंदोलन में जान आ गई
इंसाफ इंसाफ दो की पुकार आ गई
बड़ा हाकिम अस्पताल
अंदर गया था
चेहरे से साबित हो गया था
डील न बनी स्पष्ट हो गया था
फांसी फांसी दो के नारे रटाकर
नेता नुमा आदमी पुलिस
अधिकारी से मिला
खोपचे में जाकर
शांत रहो शांत रहो साहब कुछ
कहेंगे,
साहब ने जोर देकर कहा
काम बिलकुल पक्का करेंगे
कोई न बचे , काम वो करेंगे
अल्हादित जनता नेता को
निहारती, निहाल हो रही थी
एक डाक्टर की मौत की
तैयारी हो रही थी
लाश रिटर्न मुकाम पर
एंबुलेंस फिर पहुंची शमशान पर
नेता कुछ लोगों के साथ
पुलिस के साथ थाने गया
अखबार में सुबह , वो छप गया
महिला डाक्टर हत्यारिन है
फैसला था हो गया
हर चोर उच्चक्का मवाली वक्तव्य दे
रहा था ,
डाक्टरी में मानवता अभाव
प्रवचन दे रहा था
मौत से प्रसूता को
बचाने डाक्टर जो लड़ी
उसको हत्यारिन की
परिभाषा मिली
कांति सब खो गई
तपस्या सारी रो गई
डिग्रियां सब ध्वस्त हुई
गोल्ड मेडल धरी हुई
302 का केस,
मारने को ऑपरेशन हुआ
ऐसा बनाकर केस हुआ
हतप्रभ
उसको कुछ न सूझता था
मासूम बच्चों का चेहरा
आंखों में घूमता था
पर अगले ही पल
वो राक्षसों से चेहरे
भी घेर लेते उसे
तू रही
तो चैन से रहने देंगे
विनाश तेरे घर का
आंखों सामने करेंगे
सारा ब्रह्मांड एक
इस कमरे में आ समाया
आखिरी कुछ शब्द
लिखने
को जो कागज़ कलम उठाया
लिख दिया,
मेरे बच्चों पति को
अब मत सताना
बेकसूर हूं साबित
कर रही हूं
मैं थक चुकी ,
अब मर रही हूं
डा.राजीव जैन, “सागर”