वीकैंड
आ गया फिर वीकैंड
लिए नयी ख्वाइशे
आज ‘रात’फिर नहीं सो सकेगी
छलकते प्यालों में
लहराते धुएं में
कहकशों वाद-विवादों
मीठी तकरारों में
कल दोपहर ही
पुनः सुबह होगी
आज से अलग
अलसायी
ढीली ढाली पतलून की तरह
सब सुस्त
लहराती सैल्फियां
कल शाम तक
फिर वही भागदौड़
आज से भी तेज
सूरज आसमां में होगा
मोटरों की टैं टैं
और लोगों का जमावड़ा
हर जगह
भागादौड़ी काम बस काम
यह वीकैंड ये सपने
उफ्फ्फ …
मनोज शर्मा