*”विसर्जन”*
“विसर्जन”
युगों युगों से चली आ रही प्रथाएं ,
शास्वत सत्य सनातन।
प्रथम पूज्य देव गौरी शंकर ,पुत्र कहाते गणपति गजानन।
सब देवों में पहले पूजन ,मंगल मूर्ति रूप सुहावन।
घर में विराजे आह्वान करे, माटी की मूरत लागे अति लुभावन।
एकदन्त गजवदन विनायक ,सरल हृदय निश्छल पवित्र पावन।
रिद्धि सिद्धि संग विराजे ,सौम्य रूप लगे मनभावन।
मोदक लडडू मन को भाये ,एकदन्त गजवदन गजानन।
मूषक की सवारी करते, गजवदन विनायक बैठे आसन।
तम विकार विकृतियों ,अहंकार कुरीतियों का करो दमन।
सरल शुद्ध सकारात्मक सोच विचारों से चिंतन मनन।
श्रद्धा भक्ति आस्था विश्वास से ,बहता पुण्य कर्म संचयन।
अंतर्मन हृदयभाव से मनोकामना लिए, हर्षोल्लास ये उत्सव जीवन।
चंदन सा सुवासित महके ,ये सारा घर जीवन आँगन।
श्रद्धा भक्ति प्रेम विश्वास जगाये, गणपति बप्पा का आगमन।
आना जाना लगे हुए रहता है सर्वत्र विराजे है गजानन।
अहंकार मोह दम्भ ,अभिमान ,दुर्गुणों का करे विसर्जन।
नैनो में श्रद्धा भाव जगाये ,कृपा दृष्टि बना हाथ जोड़ वंदन नमन।
अगले बरस तू जल्दी आना ,ये भक्त पुकारता है शुद्ध मन।
विदाई की घड़ी में अश्रु बहते, भक्ति रस अविरल चंचल मन।
शशिकला व्यास