विष्णुपद छंद
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( विष्णुपद छंद )
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सोच समझ कर कर्म करे तो,पाता लक्ष्य वही ।
मरने से कतराना कैसा, अंतिम सत्य यही ।।
परवाने तो कभी न डरते, जाकर स्वयं जलें ।
आओ अपने हाथों में ले, अपना सूर्य चलें ।।
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राधे…राधे….!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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(छंद मंजूषा से)