विषय-माँ।
विषय-माँ।
शीर्षक-गर तेरा साथ हो।
विद्या-पद्य (स्वतंत्र)
गर तेरा साथ हो।
आज तुम नहीं हो,
भले इस जहान के लिए।
पर माँ कभी नहीं मरती, संतान के लिए।
आज भी तुम हो,
अपनी बेटी नादान के लिए।
“गर तेरा साथ हो”…,
तो जीवन;मंजिल ए महान के लिए।
बदल दूँगी वो माहौल, जो अब बदला है।
ताकि न कह पाए कोई, तेरी बेटी अबला है।
बस माँ सिर पर मेरे,
तेरा हाथ हो।
गर तेरा साथ हो,
गर तेरा साथ हो।
मां-बेटी का रिश्ता,
जाने बस परमात्मा।
दोनों की एक-दूजे में,
बसे जैसे आत्मा।
तुझे ही याद करे दिल, चाहे कोई बात हो
चमकती मैं रहूँगी चाहे, कितनी काली रात हो
गर तेरा साथ हो,
गर तेरा साथ हो।
मैं टूट-टूटकर रोती हूँ,
पर मुझे टूटना नहीं है।
सपनों से अपने,
रूठना नहीं है।
अपने उसूलों से,
कभी छूटना नहीं है
चाहे कोई भी लगाए, कितनी भी घात हो।
गर तेरा साथ हो,
गर तेरा साथ हो!
काश!माँ हमेशा साथ रहे।
माँ की जुदाई मन कैसे सहे?
माँ बिन जीवन में कोई रंग नहीं।
दिल में कोई उमंग नहीं।
घर हो जाता सूना,
माँ के जाने से।
न ख़ुशी मिलती कोई,
किसी बहाने से।
हर चेहरे में माँ को,
खोजता है दिल।
क्या पता किस पल,
माँ जाए मिल।
काश!हाथों में सदा,
तेरा हाथ हो।
बेटी के जीवन में सदा,
माँ का साथ हो।
पर न जाने क्यों होता नहीं ऐसा?
भाग्य का ये निष्ठुर नियम है कैसा?
मेरी माँ की क्या जरूरत थी भगवान को?
क्यों पास बुला लिया अपने मेरी माँ को,
क्यों उजाड़ दिया एक बेटी के जहान को?
तेरे बिना माँ अब कैसे,
कोई सुख की बात हो?
ख़ुश रहूँ कैसे मैं,
न गर तेरा साथ हो?
वो तो ईश्वर है तो क्यों ऐसे दुःख देता है?
क्यों नहीं बेटियों को आजीवन मातृ-सुख देता है?
अकेली क्यों मुझे कर दिया?
क्यों काँटों से मेरा जीवन भर दिया?
अब ये घर,मकान हो गया।
मेरा वजूद एक,
गैर जरूरी सामान हो गया।
मैं फिर भी माँ हिम्मत कर रही हूँ।
चाहे रोज दुःख से मर रही हूँ।
जब तक हूँ जिंदा,
हारूँगी नहीं।
असत्य के आगे अपनी आत्मा,मारूँगी नहीं।
कभी तो होगी सुबह,
चाहे अभी काली रात हो।
एक दिन पा लूँगी मंजिल , गर तेरा आशीर्वाद और..
तेरा साथ हो।
चाहे उस आसमां से ही सही माँ,
पर तेरा साथ हो।
बस तेरा साथ हो,
गर तेरा साथ हो।
प्रियाप्रिंसेस पवाँर
स्वरचित, मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78