#विषय नैतिकता
#रचनाकार का नाम – राधेश्याम खटीक
#दिनांक:-२३/०९/२०२४
#दिन:- सोमवार
#विषय:- ‘नैतिकता’
#विधा:- कहानी
“पात्र परिचय”
१:- ‘नियम धर्म’ सुंदर सुशील व आज्ञाकारी शिष्य के रूप में जाना जाता है !
२:- ‘चतुर चालाक’ नियमों को तोड़ मरोड़ कर हर हाल में आगे बढ़ाना यही उद्देश्य !
३:- ‘गुरुदेव’ गुरुकुल में बच्चों को धर्म व नैतिकता की शिक्षा देना ,!
४:- ब्राह्मण दंपती पूजा पाठ व धार्मिक अनुष्ठान करके गुज़र बसर करना !
“दृश्य”
बड़े लड़के का नाम … ‘नियम धर्म’, छोटे लड़के का नाम… ‘चतुर चालाक’, दोनों के स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था !
यह जब बड़े हुए तो ब्राह्मण दंपति ने शिक्षा ग्रहण के लिए गुरुकुल में रखा, ‘दोनों’ गुरुकुल में रहने लगे.. और ‘गुरुदेव’ से शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने लगे !
‘बड़ा भाई’ जहां ‘गुरुदेव’ की आज्ञा मानकर पूरे मन व लगन से शिक्षा ग्रहण करता रहा, उसके उलट छोटा भाई …शिक्षा तो ग्रहण करता था, लेकिन साथ में तर्क वितर्क में उलझा रहता था, ‘गुरुदेव’ जो भी काम देते थे उसमें अपनी बुद्धि को ज्यादा लगाता था, एक दिन दोनों को ‘गुरुदेव’ ने पास बुला कर ‘कहा’ बेटा आज ‘तुम’ जंगल से लकड़ी लेकर आओ, लेकिन ध्यान रहे काटकर नहीं लाना जो सुख कर नीचे गिर गई हो उसे ही लेकर आना और जरा जल्दी आना खाना भी बनाना है !
‘दोनों’ ने हां में सिर हिलाया और चल दिए जंगल की ओर, कुछ दूर आगे चलने पर ‘छोटे भाई’ ने अपना रास्ता बदल लिया, ‘छोटे भाई’ ने ‘मन’ में विचार किया कि ‘गुरुदेव’ ने कहां है, काटकर भी नहीं लाना और सूखी लकड़ियां ही लाना और आश्रम भी जल्दी पहुंचना है, तो इतनी लकड़िया तो जंगल में मिलेगी नहीं, ‘उसने’ झटपट ‘अपने’ ‘मन’ में कुछ सोचा और गांव की ओर चल दिया, गांव में, गांव के बाहर जो लोग बाड़े बनाकर रखते थे, उन बाड़ों में लकड़ियों के ढेर लगे रहते हैं, वह उसी लकड़ियों में से कुछ लकड़ियां लेकर आश्रम की ओर चल दिया !
आश्रम पहुंचकर ‘गुरुदेव’ से बोला-
लो ‘गुरुदेव’ में लकड़िया लेकर आ गया,
‘गुरुदेव’ ने उसकी तरफ देखा; और ‘आश्चर्य’ से बोले – इतनी जल्दी आ गए ?
और तुम्हारा भाई ‘नियम धर्म’ कहां है –
‘भैया’ तो जंगल की ओर गए,
क्या अभी तक नहीं आए ?
फिर ‘गुरुदेव’ कुछ नहीं बोले; समझ गए कि ‘मैंने’ जो ज्ञान दिया है, उसको बड़े भाई ‘नियम धर्म’ ने ग्रहण कर लिया, छोटे भाई ‘चतुर चालाक’ को अभी ज्ञान की सही समझ नहीं आई !
उधर उसका ‘बड़ा भाई’ जंगल में घूम घूम कर सुखी हुई लकड़िया इकट्ठी करने लगा, शाम को जब बड़ा भाई ‘नियम धर्म’ थोड़ी सी लकड़ियों के साथ आश्रम पहुंचा, तो ‘छोटे भाई’ ने ‘बड़े भाई’ नियम धर्म पर व्यंग बाण चलाते हुए बोला,
अरे ‘भैया’ आप कहां रह गए थे,
मैं तो सुबह ही लेकर आ गया था लकड़िया,
और खाना भी बना दिया,
‘बड़ा भाई’ कुछ नहीं बोला, और लकड़िया एक तरफ रखते हुए ‘गुरुदेव’ के चरणों में बैठ गया,
तब ‘गुरुदेव’ ने ‘नियम धर्म’ के सर पर हाथ रखते हुए बोले:- बेटा आज ‘मैं’ ‘तेरे’ से बहुत खुश हूं,
‘मैंने’ जो ‘तुमको’ ज्ञान दिया है उसको तुमने पूर्ण तरीके से अपने हृदय में धारण कर लिया है !
इतने में छोटा भाई ‘चतुर चालाक’ तपाक से बोल पड़ा, यह क्या ‘गुरुदेव’? ‘भैया’ सुबह से शाम तक आए और दो-तीन लकड़ियां लेकर आए फिर भी आप ‘उनको’ शाबाशी दे रहे हो, और ‘मैं’ सुबह ही लकड़िया लेकर आ गया, और ढेर सारी लकड़ियां लेकर आया , और ‘मैंने’ खाना भी बना दिया, फिर भी आपने मुझे आशीर्वाद नहीं दिया !
तब ‘गुरुदेव’ ने चतुर चालाक को समझाया,
बेटा तुमने काम तो सही किया और समय पर किया है,
लेकिन ‘मेरी’ :- बात को तुमने ध्यान से नहीं सुना,
‘मैंने’ :- तुमको लकड़िया जंगल से लाने के लिए बोला, और परिश्रम करके लकड़ी इकट्ठे करके लाने के लिए बोला था !
किसी अन्य के द्वारा की गई मेहनत पर अतिक्रमण करने के लिए नहीं बोला !
‘गुरुदेव’ (लंबी सांस भरकर) कुटिया की ओर चल दिए,,,,,,……..
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“कहानी से मिलने वाली सीख”
आज संसार में भी यही हो रहा है, ‘नियम धर्म’ जैसे व्यक्ति कठिनाइयों वाला जीवन जी कर भी एक दूसरे का सहयोग करते हुए आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उनके चेहरे पर कभी शिकायत नहीं होती !
दूसरी तरफ ‘चतुर चालाक’ जैसे, स्वार्थी व्यक्ति नियम और धर्म को तोड़ मरोड़ कर अपने अनुकूल बना रहे हैं, कहीं मैं पीछे न रह जाऊं इस आशय के साथ प्रकृति के संसाधन को समेटने में लगे हुए है !