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22 Feb 2024 · 1 min read

विषय:तोड़ो बेड़ियाँ।

विषय:तोड़ो बेड़ियाँ।
शीर्षक:प्रथम युद्ध स्वयं का स्वयं से।
विद्या:कविता।
बहुत समाज से लड़ी तुम।
न क्यों,अपने सत्य पर अड़ी तुम?

बृहत शब्द,बड़ी-बड़ी बातें;सुनते-सुनते,
थकी नहीं क्या तुम?
बेड़ियाँ बंधी न जाने कब से,
तोड़ोगी इन्हें कब तुम?

बनकर देवीऔर कितनी,
परीक्षा दोगी?
बनी अगर अबला;तो हर कदम,जुल्म सहोगी।

न मांगो हक किसी पुरुष से,
किसी समाज से,
बनो स्वयंसिद्धा।
पहले स्वयं से स्वतंत्र हो जाओ,
सीख लो,स्त्री होने की विद्या।

फैलाकर अपने पंख,
उडो गगन में।
तुम भी,जीवन जीने की अधिकारिणी,
ठान लो पहले ये मन में।

बेड़ियाँ चाहे जिसने बाँधी,
बंधन में तो हो तुम।
अब तो हो जाओ आजाद।
नहीं चाहती क्या आजादी तुम?

समाज जितना पुरषों का,
उतना तुम्हारा भी है।
जब-जब जीती कोई स्त्री,
तब जग हारा भी है।

बेटी,बहन,पत्नी और माँ से पहले,
तुम हो एक इंसान।
तोड़ो बेड़ियाँ खुद ही,
खुद को दो सम्मान।

प्रथम युद्ध,प्रथम स्वतंत्रता,प्रथम स्वयं से जोड़ दो।
अबला,ईर्ष्या,अज्ञान और परतन्त्रता जैसे,अवगुणों को छोड़ दो।
“तोड़ों बेड़ियाँ”का व्रत अपनाकर,
मन,आत्मा की बेड़ियाँ तोड़ दो।

प्रिया प्रिंसेस पवाँर
Priya princess Panwar
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
C R

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