विषय:चिंतन
विषय:चिंतन
चिंतन जिसमें कि भूतकाल के लिये विचार किया जाता है तो चिंतन से उत्साह और आत्मविश्वास बढ़ता है। कार्य करने की शक्ति बढ़ती है। हम अपने विचारों में पवित्रता लाने का प्रयास करें तो सुखद अनुभूति होती हैं आंख, कान और मुंह इन तीनों को नियंत्रित करने की कला विकसित होती हैं
“मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से चिंतन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाता है।जिसमें श्रृंखलाबद्ध विचार किसी लक्ष्य,उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं।”
भूतकाल हमारा किस तरीके से व्यतीत हुआ, इसके बारे में समीक्षा करना आरंभ करें मनुष्य में यही प्रवर्ति होती हैं कि वह अपनी समीक्षा नहीं कर पाते पर दूसरों की समीक्षा करना जानते हैं। पड़ोसी की समीक्षा कर सकते हैं, बीबी के दोष निकाल सकते हैं, बच्चों की नुक्ताचीनी कर सकते हैं, सारी दुनिया की गलती बता सकते हैं, भगवान् की गलती बता देंगे और हरेक की गलती बता देंगे। कोई भी ऐसा बचा हुआ नहीं है, जिसकी आप गलती बताते न हों। लेकिन अपनी गलती; अपनी गलती का आप विचार ही नहीं करते। अपनी गलतियों का हम विचार करना शुरू करें
आत्म निरीक्षण के बाद में आत्म परिष्कार का दूसरा नम्बर आता है। सुधार कैसे करें? हममें क्या कमी है जो हम ठीक कर सके।सुधार में क्या बात करनी होती है? सुधार में अपने मन को व्यवस्थित कर रोकथाम करनी पड़ती है। मसलन, आप शराब पीते हैं तो आप बन्द कीजिए नहीं साहब, हम शराब नहीं पीयेंगे। आत्म परिशोधन इसी का नाम है जो गलतियाँ हुई हैं, उसके विरुद्ध आप बगावत खड़ी कर दें, रोकथाम के लिये आमादा हो जायें, संकल्प बल का ऐसा इस्तेमाल करें कि जो भूल होती रही हैं, अब हमसे न हों। इस प्राथमिकता पर ध्यान दे।
चिंतन को हम ऐसे देख सकते हैं:
(१) प्रत्यक्षात्मक चिंतन
(२) प्रत्यात्मक
(३) विचारात्मक चिंतन
(४) सृजनात्मक चिंतन
(५) मूर्त चिंतन और अमूर्त चिंतन
(६) अपसारी चिंतन और अभिसारी चिंतन
विषय गम्भीर हैं इतने विमर्श से पूर्णतया नही आती तो अधूरा ही छूट रहा है कभी फिर अवसर मिला तो अवश्य भाग लूंगी।सार्थक विषय के लिए धन्यवाद।कोई त्रुटि हो तो अग्रिम माफी चाहूंगी
डॉ मंजू सैनी
गाजियाबाद