विश्व हिंदी दिवस पर कुंडलिया
विश्व हिंदी दिवस पर कुंडलिया
हिंदी मेरी जानकी, हिंदी मेरे राम।
हिंदी में शंकर सदा, हिंदी में घनश्याम।।
हिंदी में घनश्याम, लिए मुरली वे चलते।
देते हैं उपदेश, मनुज बनने को कहते।।
कहें मिश्र कविराय, चमकती जैसे बिंदी।
उसी तरह से दिव्य, भव्य है देवी हिंदी।।
हिंदी में मधु प्यार अति, हिंदी में अनुराग।
हिंदी में मानव छिपा, हिंदी में है त्याग।।
हिंदी में है त्याग, हिंद हिंदी के नाते।
अति संवेदनशील, मनुज हिंदू कहलाते।।
कहें मिश्र कविराय, यहां शिव जी का नंदी।
तपोभूमि का पृष्ठ, बनाती हरदम हिंदी।।
हिंदी वैश्विक नाम है, लोक भाव वन्धुत्व।
हिंदी में पुरुषार्थ है, आश्रम वर्ण गुरुत्व।।
आश्रम वर्ण गुरुत्व, पूर्ण है हिंदी मानव।
है पावन अनमोल, हिंद का निर्मल मानव।।
कहें मिश्र कविराय, यहां नहिं हरकत गंदी।
सबके प्रति सद्भाव, सिखाती जग को हिंदी।।
साहित्यकार: डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी