* विश्व ने माना जिसका लोहा *
ज्ञानदिवस की पूर्वसन्ध्या पर ज्ञानपुरुष को उनके जन्मदिवस पर समर्पित रचना
? विश्व ने माना लोहा ?
क्या हिंदुस्तान कभी मानेगा
एक
महामानव आया था जग में
क्या कोई उसे पहचानेगा
रहकर मुफलिसी में जिसने
नही केवल मुफलिसी कहना
तोहीन होगी उस महामानव की
जिसने ऐसे ऐसे मानव निर्मित
स्वर्ण-अवर्ण के बड़े दुःख झेले हैं
स्वार्थ से परे होकर जिसने अपनी
आधी आबादी को आजाद किया
मगर खेद यही भेद यही आज भी
इस पावन कहलानेवाली धरा पर है
मानव मानव में एक दार्शनिक भेद
आज भी विद्यमान है जो अदृश्य
मि. इण्डिया की माफिक अप्रत्यक्ष
विश्व ने माना तभी भारतीय माने हैं
वरना अनभिज्ञ रहते भारतवासी
सीमित दायरे से निकलकर आज
छवि छायी है इस संसार में
दुनिया का कोई लाल नही
जी बाबा की सानी कर सके
मगर ये
ध्रुवीकरण धर्म के नाम जाति का
कौन किये जा रहा है
समझो
अभी भी है समय चेतो
जागो गहरी नींद से हे मानव
जीना है
तो जीने को संघर्ष करो
ना बीफरो ना बिखरो जहां में
संगठन ही है प्रभावी और
मत होने दो दूसरे के विचारों
अपने विचारों पर हावी
सोच लो केवल शिक्षा से
हम संवर नही सकते
संगठन संघर्ष नही सीखा तो
कभी अपनी ताकत को गैर
के सामने नही दिखला सकते
ताकत का प्रयोग जरूरी नहीं
मग़र
ताकत का अहसास जरूरी है
देखे अगर
गैर भी तो सो बार सोचे
हमे अपनी
ताकत का अंदाज जरूरी है
संगठन पहले जरूरी है शिक्षा से
संघर्ष जरूरी है कुछ पाने को
आज माना है दुनिया ने लोहा
उस अतुलनीय
महामानव की शिक्षा को
नमन् उस
महमानव को जिसने कभी
दूसरों का मुंह नहीं ताका
करते चले करणीय कर्म
दुनियां को दी सीख
शिक्षा संगठन संघर्ष बिना
जीवन जीना व्यर्थ ।।
?मधुप बैरागी