World Population Day (विश्व जनसंख्या दिवस)
विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष # संयुक्त राष्ट्र की संस्था यू एन पी एफ द्वारा जारी किए गए रिपोर्ट में भारत की जनसंख्या 142.8 करोड हो गई जो कि चीन से 30 लाख अधिक है और उम्मीद किया जाता है कि 2050 तक भारत की आबादी 166.8 करोड़ से अधिक होगी। देश की जनसंख्या में 2011 के बाद से 1.2% की बढ़ोतरी हो रही है और अभी भारत में प्रजनन दर 2.0% है। वहीं पुरुषों की तुलना में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा अधिक पाई गई है। रिपोर्ट के अनुसार जहाॅं महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 74 वर्ष है तो वहीं पुरुषों का 71 वर्ष है। बढ़ी हुई आबादी में अभी जहाॅं युवा आबादी (खासकर 15 से 24 वर्ष वालों की आबादी 25 करोड़) की जनसंख्या अधिक होने से अभी अगर साकारात्मक आसार नजर आ रहा है,तो वहीं 2050 तक हर पांचवां भारतीय बुजुर्ग होगा। गौरतलब है कि अपने यहाॅं जीवन स्तर को सुधार कर चीन ने अपनी आबादी को नियंत्रित किया है। आबादी पर नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का विकास नितांत आवश्यक है। जहाॅं चीन में जनसंख्या नियंत्रण बड़ी कड़ाई के साथ किया गया है वहीं इसके विपरीत भारत में उदारता वाली नीति जनसंख्या वृद्धि के सुगम मार्ग को प्रशस्त किया। जहाॅं कभी चीन ने एक संतान की नीति को लागू किया वहीं दूसरी ओर भारत में बच्चे दो ही अच्छे, छोटा परिवार सुखी परिवार जैसा स्लोगन परिवार नियोजन का मात्र प्रचार प्रसार बनकर दीवालों, समाचार पत्रों और टी वी तक ही सीमित रह गया और अधिकांश लोगों ने मजाकिया ढंग से इसका आनन्द भी लिया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि लोकतंत्र में आबादी को कड़ाई से नियंत्रण करने की भी अपनी एक समस्या होती है।1975 में इमरजेंसी के दौरान भारत की तत्कालीन सरकार द्वारा जनसंख्या के नियंत्रण के लिए किया गया जबरन और अमानवीय प्रयास हास्यास्पद एवं पीड़ादायक है। इसलिए मात्र क्षेत्र में जागरूकता के लिए पहल करना ही भारत की अपनी मजबूरी है। इन सबको देखते हुए ये भी सत्य है कि युद्ध स्तर पर आबादी को जल्द स्थिर करने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प भी तो नहीं है। इसमें संशय नहीं है कि बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए भोजन, आवास,रोजगार जैसी समस्या सिर पर चढ़कर बोलेगी और सरकार के पास मौन साधने या खोखली घोषणा के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं होगा। ज्ञातव्य है कि देश की आजादी के बाद से ही परिवार नियोजन कार्यक्रम सरकार की प्राथमिकता में रही है। इसके बावजूद भी कार्यक्रम की असफलता के नाकारात्मक पक्ष पर मंथन करने की आवश्यकता है। कई कारण एक साथ एक दूसरे के हाथ मिलाते नजर आएंगे। यदि यह मान लिया जाए कि परिवार नियोजन कार्यक्रम देश में कुछ कारणों से अपनी मानक उपलब्धि को नहीं पा सका तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। परिवार नियोजन के स्थायी और अस्थायी दोनों ही साधन सीमित वर्ग तक ही सीमित होकर रह गया और सर्वमान्य स्वीकार्यता इसे अब तक नहीं मिल सका। देश की सीमा को पार कर निरंतर घुसपैठियों का निर्बाध रूप से प्रवेश और वहीं दूसरी ओर लड़का के जन्म होने के इंतजार में मूक बने रहना,कम उम्र में विवाह,दो बच्चों के बीच में अन्तर नहीं रख पाना, परिवार नियोजन के अस्थायी उपाय से संबंधित सामग्री शोभा की वस्तु बन कर अस्पतालों में रह जाना इत्यादि। इस संदर्भ में वहीं दूसरी ओर वर्त्तमान परिस्थिति में स्वास्थ्य कार्यक्रमों की सफलता को भी हम नजरंदाज नहीं कर सकते। जैसे कि बच्चों और माताओं के लिए टीकाकरण कार्यक्रम से शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी, कई बीमारियों के विरुद्ध कार्यक्रम बनाकर कार्य किया जाना और प्रसव के लिए संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना, राष्ट्रीय और अनुराष्ट्रीय कार्यक्रम अंतर्गत कुछ बीमारियों के विरुद्ध जंग और जागरूकता, किशोर वर्ग को भी स्वास्थ्य कार्यक्रमों से जोड़ना,पोषण कार्यक्रम पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाना, अस्पतालों का सुदृढ़ीकरण कर 24X7 सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाना इत्यादि। इस तरह की ढेर सारी बातें हैं, पर सच तो ये है कि आज भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश है। यदि इससे हमें तत्काल गौरव की अनुभूति होती है तो कुकूरमुत्ते की तरह ढ़ेर सारी चुनौतियाॅं भी निस्संदेह मुॅंह बाए खड़ी मिलेगी।