विश्व कविता दिवस
विश्व कविता दिवस
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कवयित्री हूं कविता लिखती हूं
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कवयित्री हूं कविता लिखती हूं,
शब्द शब्द हर भाव वीनती हूं,
पिरोती जाती सुंदर माला मोती,
देख कविता फूल बन खिलती हूं।
मेरी कविता भावों की भाषा है ,
जीवन सुघढ़ डोर अभिलाषा है ,
गूढ़ रहस्य ढूंढती रहती हर पल ,
निराशा छोड़ सपनों की आशा है।
सूरज जैसा तेज समाया है ,
चंद्र शीतलता का गुण पाया है,
बहुरंगी तारों से शोभित होकर,
अनुपम सृष्टि सौंदर्य सजाया है ।
पहाड़ नदियां सागर रेगिस्तान ,
प्रकृति का कण-कण शब्द मिलान
फूलों की खुशबू झरनों का राग,
काव्य रस पूर्ण और छंद विधान ।
सीमा के प्रहरी वीरों की कहानी,
भक्ति वैराग्य वो मीरा हटठानी ,
राधा कृष्ण की मधुर रास लीलाएं,
धरा देव इह- परलोक ज्ञान वानी।
कभी अंबर भयंकर मेघ गरजती,
कभी माधुर्य भाव कण सरसती ,
खटटे मीठे अनुभव का मिश्रण,
यह लेखनी नव पुरातन खिसकती।
हर नजर की गहराई समझती हूं,
नजर नजर का आकलन करती हूं
आड़ी तिरछी खोटीमैलीनजरों पर
वार अपनी पैनीकलम से करती हूं ।
खुशियां संजो संजो कर लाती हूं ,
हर मन उर्जित भाव समाती हूं,
दुख पीड़ा में भाव विह्वल होकर,
अश्रु पोंछ और हौंसला बंधाती हूं।
मैं कवयित्री हूं कविता लिखती हूं ,
जैसा लिखती हूं सच्चा लिखती हूं,
एक नहीं हर विषय पर लिखती हूं,
चाहे कैसा भी हो पर लिखती हूं ।
(विश्व कविता दिवस पर सभी को शुभकामनाएं) 🙏🙏
शीला सिंह
बिलासपुर हिमाचल प्रदेश 🙏