एक इस आदत से, बदनाम यहाँ हम हो गए
मेरे बाबूजी लोककवि रामचरन गुप्त +डॉ. सुरेश त्रस्त
समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, कुछ समय शोध में और कुछ समय
जिस भी समाज में भीष्म को निशस्त्र करने के लिए शकुनियों का प्
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आज तो मेरी हँसी ही नही रूकी
**गैरों के दिल में भी थोड़ा प्यार देना**
गीत- मुहब्बत की मगर इतना...
*धरते मुरली होंठ पर, रचते मधु संसार (कुंडलिया)*
बाबू जी की याद बहुत ही आती है
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
ख़ूबसूरती और सादगी के बीच का यह अंतर गहराई और दृष्टि में छिप
हर दिल में एक टीस उठा करती है।
कुछ अर्जियां डाली हैं हमने गम खरीदने को,