विश्वास
गर उसे मेरे ज़ज्बात का जो अहसास होता!
वो मेरे नज़दीक होती, मै उसके पास होता!!
ख्वाबो की तामीर,हम कुछ इस कदर बनाते,
गिरने की आहट पर भी उसे न विश्वास होता!!
मेरे ज़ज्बात उसने मेरे आईने से जो देखे होते!
न किसी को शक होता,न मै यू बदहवास होता!!
अब अफसोस करने से भी,होगा क्या फायदा?
मिले नही होते,क्यू गिले शिकवे अहसास होता?
वैसे गिले शिकवे भी,अपनो से ही हुआ करते!
गर मानते तुझे गैर,तो क्यू तू अपना खास होता?