विश्वास लुटेरे !
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विश्वास लुटेरे
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दिखती नहीं पहली-सी ताकत भुजाओं में
सपनीली आँखों का पानी घुल गया हवाओं में
यूँ तो दिखते हैं अब भी स्वप्न सुहावने
आस का पंछी दुबका बैठा वादों की कंदराओं में
भीजा तन मन भीजा गात भीजी अँखियाँ बावरी
बेड़ी तेरे नाम की चाव से पहनी पाँव में
इक तू और तेरा खेल दोनों मन को मौन करें
धूप नहीं अब हम जलते हैं तेरे कद की छाँव में
तुझसे पहले जितने बहुरे बाँके तिरछे मनचले
विश्वास-लुटेरे सहभागी सब सपनों की हत्याओं में
न मांग हमसे पहली-सी वो गलबहियाँ
इतना नीचे झुक न सकेंगे जितना सत्यकथाओं में
९४६६०-१७३१२ वेदप्रकाश लाम्बा