विश्वामित्र और राम (विजात,रूपमाला या मदन छंद)
विश्वामित्र और राम
विजात छंद
1222 1222
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पिता आज्ञा सदा मानों।
उसे भगवान ही जानो।
करे हर कामना पूरी ।
सहे ना पुत्र से दूरी।।
धरा पर और जो नाता।
बडी सबसे बड़ी माता।
पिता माता मनायें जो ।
सफल जीवन बनायें वो।
मिले आशीष जिनको भी।
दिखे यम खुश रहे तो भी।
पिता माता, मना आये
गजानन पद ,प्रथम पाये
तुम्हें अनमोल जीवन का,
अलौकिक पथ दिखाता हूँ।
बहुत दिन भूख ना लागे
वही विद्या सिखाता हूँ ।
बिना पानी कई दिन तक,
रहो कैसे बताता हूँ।
जगो सालों,बिना सोये,
सुभट कैसे सिखाता हूँ।
लखन बोले,मुझे विद्या
सिखा दीजे,गुरू जी ये
जगूँ कैसे ,रहूँ कैसे
बिना खाये ,बिना पीये
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रूपमाला या
मदन छंद 24 मात्राएँ
322, 322 =14
322 21=10
राम जी का काम देखा,
लगन निष्ठा भक्ति।
गुरूजी ने हर तरह से,
दी अपरिमित शक्ति।
जो सकल संसार को ही,
बना बल आधार।
जन्म देकर पालता है,
फिर करे संहार।
धर्म की स्थापना को,
ले धरा अवतार।
नाश करने पापियों का,
रूप मानव धार।
वह गुरू से सीख लेता,
दे रहा यह ज्ञान।
बिन गुरू के इस जगत में,
है नहीं कल्यान ।
जो कहें जब भी गुरूजी,
मानये तत्काल।
चरण सेवा कीजियेगा ।
जिंदगी खुशहाल।
शिष्य को गुरु चाहता है,
विश्व में हो नाम।
मैं नहीं कर सका जो भी,
यह करेगा काम।
भ्रात दोनों रात होते ,
दाबते गुरु पाँव ।
धर्म चर्चा खूब करते,
नेह की ले छाँव।
बोलते गुरु पैर छोड़ो,
अब करो आराम।
पर उठें ना शीघ्रता से,
मुदित मन हो राम ।
छोड़ते गुरु के चरण जो,
राम सैया आयँ ।
तब लखन लगते दबाने,
रामजी के पायँ ।
आश्रम के काम सारे,
रीति नीति पाल।
रोज करते चाव लेकर,
जगपिता जगपाल ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
13/1/23