विश्रान्ति.
विश्रान्ति
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रहने दो मुझे
यहाँ थोड़ी देर..
मैं बैठना चाहती हूँ
अकेले.
बैठना है मुझे थोड़ी देर
इस सागर के किनारे
लोगों के भीड़ से
अलग करके.
नहीं देखना चाहती हूँ मैं
लोगों का टकराव.
प्यार करने दो मुझे
इस चाँदनी रात को
थोड़ी देर यहाँ
अकेले बैठकर.
जब कहीं मुझे मौत के
ठंडे हाथ
गले मिलेंगे.
चाहती हूँ मैं भी वह
शाश्वत विश्रान्ति.
मत आओ तब मेरे सामने
अंदर छिपी हुई
नफरत एवं द्वेष के
टुकड़े को एक बूँद
आँसू से बहाकर.
कहना है और भी मुझे
थोड़ी बात तुमसे.
कभी मत बोलो वह झूठ
‘कितना अच्छा आदमी
था वह… इतना जल्दी
छोड़कर चला गया हमको. ‘
मुझे भी मालूम है कि
उतना अच्छा नहीं था मैं भी.
छुओ मत मुझे….
मत दिखाओ
अपना झूठा प्यार.
अब नहीं चाहती हूँ मैं
जो मुझे ज़िंदा रहने
पर नहीं मिला है.
मत बुलाओ मुझे
अपना नाम बताकर
या ना बताकर.
नहीं चाहती हूँ मैं
तुम्हारा अलविदा.
कभी मुछसे ईर्ष्या मत करो
और न चाहो ये शाश्वत विश्रान्ति….
बिना चाहे पर भी
मृत्यु की ठंडी बाहें
गले मिलें तुम्हें भी
एक न एक दिन.
जाने दो मुझे इस
चाँदनी रात में
लेना है मुझे
अपनी शाश्वत विश्रान्ति.
रहने दो मुझे….मैं
यहाँ थोड़ी देर पर
बैठना चाहती
हूँ अकेले.