विवेक
हम जो सोचते हैं वह सब कर नहीं पाते ।जो हम कर सकते हैं वह सब सोच नहीं पाते ।हमारी सोच समझ के बीच का फासला हम कभी जान नहीं पाते ।हमें लगता है दूसरे भी ऐसा ही सोचते होंगे। कभी हमारी सोच और समझ दूसरों पर हावी हो जाती है। कभी दूसरों की सोचो समझ हम पर हावी हो जाती है ।इस कशमकश में हम यथार्थ के धरातल को भूल जाते हैं कि हमारी कल्पना की उड़ान हमें शिखर से व्यवहारिकता के समतल पर भी ला सकती है। कल्पना क्षणभंगुर है जब तक यथार्थ की कसौटी पर उसको परखा ना जाये ।यह एक ऐसा क्षणिक सुखद अनुभव है जिसके अंत में हमें यथार्थ का कड़वा विषपान करना पड़ता है ।अज्ञानी कल्पना शील होने पर दुखों का निर्माण करता है ।वही ज्ञानी कल्पना शील होकर सुखदायक नव सृष्टि का सृजन करता है। विवेकशील यथार्थ के धरातल पर व्यवहारिकता के साथ होता है ।अज्ञानी यथार्थ से परे उड़ान भरता है कल्पना लोक में विचरण करता है ।विवेक विकास की जननी है ।कल्पना विवेक के अभाव में अधोगति का परिचायक है।