विविध दोहे
विविध दोहे
पानी स्वयं बचाइए, करिये स्वयं सुधार।
औरों को बतलाइये, व्यर्थ न हो जलधार।।
पानी को कम खर्चिये, लेकिन रहिये साफ।
गंदा हाथ नहीं रखें, गुस्ताखी हो माफ।।
जहां-तहां मत थूकिए, थोड़ा जाएं दूर।
कोई टोके आपको, करें नहीं मजबूर।।
बच्चों को सिखलाइये, प्रथम स्वच्छता कर्म।
साफ-सफाई खुद रखे, माने कुछ न शर्म।।
खाना-पानी उचित ले, जितना खा-पी पाय।
सब्जी पानी अन्न हो, ब्यर्थ न फेका जाय।।
पानी पवन अपार हैं, धरती पर उपलब्ध।
फिर भी बिकने है लगे, ‘कौशल’ हैं स्तब्ध।।
रखें शुद्ध जल वायु को, करें उचित उपयोग।
कोई वंचित न रहे, सब जन रहें निरोग।।
स्वच्छ-स्वस्थ हरदम रहें, उत्तम रखें विचार।
भाई चारा प्रेम हो, हो ऐसा व्यवहार।।
मानवतावादी बने, जीव मात्र से प्यार।।
आतंकी का कीजिये, धरती से संहार।।
शांति-प्रेम ही उचित है, रहे शांति का जोर।
कौशल क्रोध करें उचित, शांति बने जब शोर।।
मजहबवादी मत बने, मानवता हो धर्म।
कट्टरता को त्यागिये, बने नहीं बेशर्म।।
====
कौशलेन्द्र सिंह लोधी ‘कौशल’