विवाह गीत
आओ गजानन जी घर में पधारो जी
सकल देवों के संग स्वागत तिहारो जी
बाजे शहनाई गाओ मंगल बधाई
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
दादा जी दादी जी खुशी से फूले नहीं समाएं
सर्व सुहागन की दें बिटिया को दुआएं
नाना-नानी मामा-मामी मना रहे खुशियाँ
कल थी नन्हीं कली आज बनी है दुल्हनिया
संग आशीषों के आँखें हैं भर आईं
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
स्थापित गणपति रिद्धि सिद्धि संग में
सकल सुहागनें पूजें गणेश उमंग में
थरपने में सब हाथ हैं लगाईं
शगुन की मूंग बड़ी सबने बनाईं
सबने प्यारी बन्नी की ली हैं बलाईं
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
हल्दी और तेल चढ़ा रहीं सुहागनें
मंगल गीत ढोलक बाजें आज आँगने
पीठी उबटन से आओ बन्नी को संवार दें
हल्दी से गोरी कंचन काया को निखार दें
सोहणी लागे बन्नी जैसे उतर परी है आई
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
चाचा भैया फूफा जीजा सब उदास हैं
बिटिया से बिछड़ने के गम से निराश हैं
लाड़ो रानी देख रही सबको तरसती
बातों-बातों में उसकी अँखियाँ बरसतीं
भाभियाँ और सखियाँ उसे बहुत समझाईं
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
सज गया घर सज गयी जी दुल्हनिया
ले जाने दुल्हन द्वार आ पहुंचे पिया
घोड़ी चढ़े नौशे जी ने तोरण मारा
सासू माँ ने आरती की तिलक से संवारा
अब तो वरमाला की शुभ बेला आई
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
बैठे मंडप में दोनों बंधा गठबंधन
वैदिक रीति से शुरू हुआ मंत्रोच्चारण
पंडित जी ने हथलेवा से पाणिग्रहण कराया
बन्ने ने बन्नी की मांग सिन्दूर सजाया
सात फेरे सप्तपदी प्रतीज्ञा दोहराई
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
आया आया अंतिम क्षण बड़ा दुखदायी
माहौल में देखो बड़ी उदासी छायी
घर वाले भीगे मन से दे रहे विदा
दूल्हे राजा हो रहे दुल्हन पर फिदा
रोते-रोते बहना से तिलक कराते भाई
बिटिया के ब्याह की शुभ घड़ी आई।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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