योग गृहस्थ(पुस्तक) : विवाह की रजत जयंती
संस्मरण/ योग गृहस्थ पुस्तक की रचना
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इस तरह गोपनीयता पूर्वक हमने मनाई अपने विवाह की रजत जयंती
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“योग-गृहस्थ” पुस्तक का आरंभ इन पंक्तियों से है :-
देव हमें वर दो विवाह का बंधन कभी न टूटे
देव हमें वर दो न साथ आजीवन हरगिज छूटे
13 जुलाई 1983 को हमारा विवाह हुआ था और 13 जुलाई 2008 को विवाह की रजत जयंती पड़ रही थी । कई महीने पहले से मेरे दिमाग में योजना थी कि इस अवसर पर हम परंपरागत रूप से जो आयोजन होते हैं ,उन से हटकर कुछ अलग अपनी रजत जयंती मनाएंगे । इसके लिए मैंने विवाह के सफल होने के संबंध में एक काव्य – रचना आरंभ कर दी । इसमें किस प्रकार से परस्पर प्रेम और मित्र – भाव से पति और पत्नी को जीवन यापन करना चाहिए ,इसका वर्णन किया गया है । यह काव्य ऐसा है कि अगर इसके अनुसार पति – पत्नी अपना जीवन व्यतीत करें तो एक आनंदमय गृहस्थी की रचना निश्चित रूप से हो सकेगी ।
जब रचना पूर्ण हो गई तब मैंने इसका नाम योग गृहस्थ रखा। नाम के अनुरूप इसमें सामग्री थी और यह भावना भी निहित थी कि गृहस्थ धर्म का पालन भी अपने हाथ में किसी जंगल या गुफा में जाकर योग – साधना करने से कम महत्वपूर्ण नहीं होता। यह भी बताया गया था कि घर पर रहकर ही तथा गृहस्थी के बीच जीवन व्यतीत करते हुए ही हम ईश्वर की प्राप्ति कर सकते हैं।
पुस्तक का आरंभ इन पंक्तियों से है देव हमें वर दो विवाह का बंधन कभी ना टूटे देव हमें वर दो ना साथ आजीवन हरगिज़ छोटे
पुस्तक के प्रकाशन की तिथि हमने रजत जयंती वाले दिन 13 जुलाई 2008 की रखी । यही तिथि पुस्तक पर भी अंकित हो गई । मैंने अपनी पत्नी से पूछा “इसमें हम दोनों का एक चित्र आ जाए ? ”
उन्होंने कहा “अगर ऐसा हुआ तो फिर सारी योजना फेल हो जाएगी क्योंकि तब तो पुस्तक हाथ में आते ही सब को पता चल जाएगा कि आज हमारी रजत जयंती है ।”
मैंने कहा “ठीक कह रही हो । तो ,इतना लिख दें कि आज रजत जयंती है ?” पत्नी ने इस पर भी हामी नहीं भरी। विचारधारा की दृष्टि से वह मुझ से अधिक दृढ़ तथा परिपक्व हैं । परिणामतः पुस्तक पर तिथि तो अंकित हो गई लेकिन उस तिथि का कोई विशेष महत्व है ,यह पुस्तक को देखने से पता नहीं चल रहा था।
फिर मैंने योग गृहस्थ के पाठ के लिए रामपुर में मिस्टन गंज स्थित अग्रवाल धर्मशाला में सत्संग भवन के संचालक श्री विष्णु शरण अग्रवाल सर्राफ जी से बात की। उन्होंने सहर्ष पुस्तक के विमोचन तथा काव्य पाठ की अनुमति प्रदान कर दी। दरअसल “योग गृहस्थ” के लिए सत्संग भवन में एक तो हमें आध्यात्मिक रूप से अनुकूल वातावरण मिलता था दूसरी सुविधा यह थी कि इस सत्संग भवन में दैनिक सत्संग होता था । सौ – पचास लोग रोजाना इकट्ठे हो जाते थे ,बिछा – बिछाया तथा माइक लगा हुआ इंतजाम होता था । इस दृष्टि से भी सत्संग भवन हमारे अनुकूल पड़ता था कि विष्णु जी हमारा कार्यक्रम करा कर प्रसन्न होते थे । यह आयोजन के मूल में मुख्य बात थी।
कार्यक्रम के अनुसार हम सत्संग भवन में नियत तिथि और समय पर पहुंच गए । विष्णु जी ने पुस्तक का विमोचन किया । कुछ अन्य वरिष्ठ सत्संगी – बंधु इस कार्य में सहयोगी बने । उसके बाद पुस्तक का पाठ हुआ । सब लोग यही समझते रहे कि रवि प्रकाश जी पुस्तकें लिखते रहते हैं तथा उनके विमोचन और पाठ के आयोजन भी होते हैं ,अतः यह भी उसी तरह का एक आयोजन है । किसी को भी जरा – सा भी संदेह नहीं था कि यह हमारे विवाह की रजत जयंती के उपलक्ष्य में पुस्तक लिखी गई है और उसका विमोचन और पाठ हो रहा है। यह तो फिर बाद में सबको पता चला कि आज का कार्यक्रम कुछ अनूठा था और एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए था ।
हम पति – पत्नी “योग गृहस्थ” के विमोचन और पाठ की पूरी अवधि में मुस्कुराते रहे, क्योंकि हमारी योजना सफल जा रही थी और यह ऐसी रजत जयंती थी जो केवल हम दोनों ने ही मिलकर मनाई थी। हालांकि बाद में फिर शाम को विवाह की वर्षगांठ सबको पता चलने लगी और फिर कुछ लोगों ने आत्मीयता-पूर्वक आकर हमारे घर पर केक काटा ,जो वह स्वयं ही लेकर आए थे । हमने खुशी-खुशी सब में सहभागिता की ।
रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451