विवश राज्य प्रवासी
आज अपने देश में
सहमें – दबे ,
बेसुध जन
चले जा रहे हैं …
थके क्लांत …
भूखे व्याकुल …
भयाक्रांत …!
भावनाओं में डूबते-उतराते ,
सोचते विचारते …
क्या यही है मेरा देश ,
जहां सभी सुविधा उपलब्ध
देखकर विशेष वेश !
भारत विघटन वाले
राज्य के मेहमान बने हैं ,
भोजन छाजन सुलभ ,
कितने भाग्यवान बने हैं !
भारत निर्माता सोच-सोच
मरे जा रहा है …
शहर छोड़ अब गांव बढ़े जा रहा है …!
आलोक पाण्डेय