विवशता
हृदय विदारक हादसे हो जाते हैं ,
और हम मूकदर्शक बने सब सहे जाते हैं ,
सरकार जाँच आयोग बिठाती है ,
पीड़ितों को मुआवजे की घोषणा करती है ,
फिर चुप्पी साध लेती है ,
जाँच की जानकारी गुप्त रखती है ,
समय के अन्तराल में जाँच ठंडे बस्तों में
कैद हो जाती है ,
सोशल मीडिया भी कुछ दिन चिल्लाकर
चुप हो जाती है ,
जाँच रिपोर्ट के अभाव में न्याय प्रक्रिया
सुप्तप्राय होती है ,
विपक्ष की भूमिका भी
प्रश्नवाचकविहीन बन जाती है ,
भष्ट्राचार के चलते अपराधी
दण्ड निरापद बनते हैं ,
निरीह पीड़ित इस प्रकार त्रासदी को
भोगने विवश होते हैं।