विवशता
हुईं विपरीत शुभ घड़ियाँ, गमों के मेघ छाये हैं।
विवशता हो गयी ऐसी,सभी पर भय के साये हैं।
हजारों मील की दूरी, नहीं वाहन मिले कोई-
बहुत छोटी हुईं राहें, श्रमिक पैदल भी आये हैं।
हुईं विपरीत शुभ घड़ियाँ, गमों के मेघ छाये हैं।
विवशता हो गयी ऐसी,सभी पर भय के साये हैं।
हजारों मील की दूरी, नहीं वाहन मिले कोई-
बहुत छोटी हुईं राहें, श्रमिक पैदल भी आये हैं।