विल्वपत्र
बेल पात के,
तीन पात,
त्रिविध ताप बुझियौ,
सत्विक, राजस आ तामस,
केवल डैढ़ के तोरल,
पात नै बुझियौ,
बेल आत्मा त
मनुष्य बेलक गाछ,
आदर स चढ़ियौ,
अनुराग स,
बिना छेद वला,
निर्मल पात,
प्रेम स खोटियौ,
संकल्प लए,
तीनू अहंकार रूपी
त्रिपत्र के चढा दियौ ओई
आदि योगी पर,
भष्मानुरागी पर,
महादेव पर,
भष्म भ जेतै
सब ताप, संताप, आ
तखन उदित हेतै,
“परम प्रकाश”
दर्शन हैत
“आत्मा” के,
बेल के,
जीवन बनि जेतै,
अमृत रूपी बेलक सर्बत,
मुक्त आ स्वच्छंद, आ
पिवैत रहू मंद-मंद…✍️
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