Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Aug 2022 · 2 min read

विलुप्त शिक्षा

आपने भी सुना होगा कि शिक्षा अर्थात ज्ञान एक ऐसी जलती हुई मशाल है जिसका प्रकाश कभी कम नहीं होता , सूरज की रोशनी में आप बाहर की प्रत्येक वस्तु को प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं किंतु ज्ञान की मशाल से आप अपने अंतर्मन को भी साफ-साफ देख सकते हैं । इस रोशनी की लौ कभी कम नहीं होती। किंतु फिर यह “विलुप्त शिक्षा” का क्या रहस्य है? शिक्षा तो विस्तृत आयाम है, विलुप्त अर्थात गायब । शिक्षा ऐसी जो गायब हो गई हो ! शिक्षा तो कभी विलुप्त हो ही नहीं सकती..
वह कुछ तो आपके परीक्षा के परिणाम से तथा कुछ आपके व्यवहार से देखी जाती है।
हमारे बच्चे गलतियां करने से नहीं डरते ना ही शर्मिंदा होते हैं बल्कि उन गलतियों की भनक किसी को ना लग जाए इस बात से घबराते हैं कल कक्षा 11वीं के छात्र को मैंने समझाया “बेटा हिंदी के विषय पर थोड़ा ध्यान दिया कीजिए आपके उत्तर माला में वर्तनी की भूल के साथ-साथ वाक्य दोष भी हैं इस तरह तो आप परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाएंगे” छात्र ने कहा, “हां मैम ! मैं अवश्य करूंगा बस आप से गुजारिश है कि इस बात की भनक किसी को ना लगे कि मैं हिंदी विषय में इतना अधिक कमजोर हूं”।
इस बात पर मुझे हँसी भी आई और करुणा भी । हँसी इसलिए आई कि क्या कोई अपनी कमियां छुपा पाता है? क्या यह संभव है कि यह बात किसी को पता नहीं चलेगी? और करुणा इसलिए जागी कि वह छात्र मेरा जीवन के किन मूल्यों को लेकर बड़ा हो रहा है वह पल तो रहा था किंतु वह किन भावनाओं को साथ लेकर पल रहा था, जहां वह सबके सामने स्वयं को प्रकट भी नहीं कर सकता । वह बच्चा आलोचनाओं से डर कर अपने व्यक्तित्व से जूझ रही कमियों को दूर करने के बजाय उसे छिपाने पर ज्यादा यकीन रखता है।
वह शिक्षक जो उसका मार्गदर्शन करते आ रहे हैं तथा जिन विषयों को पढ़कर वह बड़ा हो रहा है, जिन पाठ्यक्रमों का वह अब तक अनुसरण करता आया है क्या इसीलिए कि वह अपने व्यक्तित्व के साथ जुड़ रही कमियों को गुप्त रखें, इस आधार पर तो हम यह कह सकते हैं कि हमारी दी हुई शिक्षा कहीं जाकर विलुप्त हो रही है।
कल के उस वार्तालाप के बाद मेरा मन कुछ अनमना सा हो गया। मैं सोचने लगी कि ऐसे कई पाठ हमने पढ़ाए जिनका उद्देश्य बच्चों को निडर बनाना था। बच्चों के स्वभाव में ईमानदारी, परोपकारी, दयालुता, स्पष्टवादीता, निष्पक्षता, सन्मार्ग, अहिंसा आदि समावेशों का होना था, किंतु शायद हम चूक रहे हैं!
शिक्षकों पर पाठ्यक्रम को पूरा कराने का दबाव इतना अधिक रहता है कि पाठ से मिलने वाली सीख का क्षेत्रफल घटकर प्रश्न उत्तरों की सीमा के दायरे में ही दम तोड़ देता है। इन्हीं कारणों से लेखक जिन भावनाओं को पाठकों तक पहुंचाना चाहता है पाठक उनसे पूर्णत: अछूते रह जाते हैं।

आप सभी से अनुरोध है कि इस विचार पर अपनी भावनाएं अवश्य साझा करें।

3 Likes · 1 Comment · 495 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Lately, what weighs more to me is being understood. To be se
Lately, what weighs more to me is being understood. To be se
पूर्वार्थ
खुश-आमदीद आपका, वल्लाह हुई दीद
खुश-आमदीद आपका, वल्लाह हुई दीद
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
दो सहोदर
दो सहोदर
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
एक सपना देखा था
एक सपना देखा था
Vansh Agarwal
सुन कुछ मत अब सोच अपने काम में लग जा,
सुन कुछ मत अब सोच अपने काम में लग जा,
Anamika Tiwari 'annpurna '
शब्दों में प्रेम को बांधे भी तो कैसे,
शब्दों में प्रेम को बांधे भी तो कैसे,
Manisha Manjari
वर्ष तिरासी से अब तक जो बीते चार दशक
वर्ष तिरासी से अब तक जो बीते चार दशक
Ravi Prakash
*** मुफ़लिसी ***
*** मुफ़लिसी ***
Chunnu Lal Gupta
दिल जीत लेगी
दिल जीत लेगी
Dr fauzia Naseem shad
सियासत में आकर।
सियासत में आकर।
Taj Mohammad
कुत्ते / MUSAFIR BAITHA
कुत्ते / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
कसौटी
कसौटी
Sanjay ' शून्य'
नया भारत
नया भारत
गुमनाम 'बाबा'
कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
Anis Shah
3116.*पूर्णिका*
3116.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
लिबास -ए – उम्मीद सुफ़ेद पहन रक्खा है
लिबास -ए – उम्मीद सुफ़ेद पहन रक्खा है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
बंसत पचंमी
बंसत पचंमी
Ritu Asooja
यूं अपनी जुल्फों को संवारा ना करो,
यूं अपनी जुल्फों को संवारा ना करो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
दिवाली का संकल्प
दिवाली का संकल्प
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ध्वनि प्रदूषण कर दो अब कम
ध्वनि प्रदूषण कर दो अब कम
Buddha Prakash
बात मेरे मन की
बात मेरे मन की
Sûrëkhâ
अर्थार्जन का सुखद संयोग
अर्थार्जन का सुखद संयोग
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
बस मुझे महसूस करे
बस मुझे महसूस करे
Pratibha Pandey
कविता-
कविता- "हम न तो कभी हमसफ़र थे"
Dr Tabassum Jahan
"आक्रात्मकता" का विकृत रूप ही "उन्माद" कहलाता है। समझे श्रीम
*प्रणय प्रभात*
प्रेम
प्रेम
Neeraj Agarwal
हसीनाओं से कभी भूलकर भी दिल मत लगाना
हसीनाओं से कभी भूलकर भी दिल मत लगाना
gurudeenverma198
वट सावित्री
वट सावित्री
लक्ष्मी सिंह
दिल कहे..!
दिल कहे..!
Niharika Verma
कुछ लोग
कुछ लोग
Shweta Soni
Loading...