*विलक्षण प्रतिभा के धनी साहित्यकार श्री शंकर दत्त पांडे*
विलक्षण प्रतिभा के धनी साहित्यकार श्री शंकर दत्त पांडे
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ऐसे साहित्यकार कम ही होते हैं जिनका समग्र लेखन उनके जीवनकाल में प्रकाशित हो जाए । ऐसे लेखक भी कम ही होते हैं जिनका प्रकाशित समग्र साहित्य उनकी मृत्यु के बाद समाज को सहजता से उपलब्ध हो । अन्यथा सामान्यतः तो स्थिति यही है कि साहित्यकार रक्त को स्याही बनाकर लिखता तो है ,समाज में परिवर्तन के लिए अथवा अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने के लिए कलम को हथियार बनाता तो है लेकिन अंततोगत्वा उसका सारा लेखन या तो दीमक के हवाले हो जाता है या फिर अस्त व्यस्त हो कर बिखर जाता है ।
जब सुधी व्यक्तियों को साहित्यकार के महत्व का अनुमान होता है और वह उसके लेखन पर दृष्टिपात करते हैं ,तब साहित्यकार का विपुल साहित्य नदारद मिलता है । साहित्यकार का सारा श्रम मानो बरसात के पानी की तरह व्यर्थ बह जाता है । बस गीली मिट्टी का आभास होता है और उसी से पता चल जाता है कि पानी कितना जोरदार बरसा होगा ।
कुछ ऐसा ही मुरादाबाद शहर के लोहागढ़ मोहल्ले में जन्मे श्री शंकर दत्त पांडे जी( जन्म 10 जनवरी 1925 — मृत्यु 12 नवंबर 2004 ) के साथ भी हुआ । आपने पांच उपन्यास लिखे , कई कहानी संग्रह लिखे लेकिन अब सिवाय एक बाल कहानी संग्रह बारह राजकुमारियाँ जिसमें मात्र छह बाल कहानियां हैं ,ही उपलब्ध है । यत्र-तत्र कुछ काव्य संकलनों में आपकी कविताएँ उपलब्ध हो जाती हैं तथा उनसे ही संतोष करना पड़ता है । धुन के पक्के शोधकर्ता उसी में से कुछ मोती ढूंढ कर लाते हैं और कवि के जीवन चरित्र के साथ-साथ उनकी उपलब्ध रचनाओं को भी समाज को अपना दायित्व समझकर सौंप देते हैं ।
ऐसे ही धुन के पक्के डॉ मनोज कुमार रस्तोगी हैं जिन्होंने साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह के माध्यम से श्री शंकर दत्त पांडे के न सिर्फ जीवन परिचय को उजागर किया अपितु भारी प्रयत्न करके उनकी अनेक रचनाओं को इधर-उधर से खोज कर समाज के सामने प्रस्तुत किया । इन रचनाओं को पढ़ने से श्री शंकर दत्त पांडे के संवेदनशील और गहन चिंतक – मस्तिष्क का बोध होता है । उनके गीतों में भारी वेदना है।
.कवि शंकर दत्त पांडे मूलतः संवेदना के कवि हैं । वह भीतर तक वेदना में डूबे हुए हैं । संसार में कुछ भी उन्हें प्रिय नहीं लगता। यहां तक कि जब मस्त हवा के झोंके उन को स्पर्श करते हैं तब वह उन हवाओं से भी यही कहते हैं कि तुम मेरे साथ मजाक न करो। मैं पहले से ही इस संसार में लुटा – पिटा हूँ।
वास्तव में प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति की नियति यही होती है क्योंकि वह जगत में सब के व्यवहार को बारीकी से परखता है और इस संसार में उसे सर्वत्र झूठ और धोखा नजर आता है। वह दृश्य में छुपे हुए अदृश्य को जब पहचान लेता है तब उसे चिकनी-चुपड़ी बातें लुभा नहीं पातीं। ऐसे में ही कवि शंकर दत्त पांडे का कवि ऐसा मर्मिक गीत लिख पाता है :-
मस्त हवा के झोंके, तू,
मुझ विह्वल से परिहास न कर।
मैं आप लुटा-सा बैठा हूँ
ले जीवन के सौ कटु अनुभव,
यह सोच रहा हूं, मैं क्या हूँ
अपनी भावुकता में बहकर
ओ, मस्त हवा के झोंके, तू,
मुझ विह्वल से परिहास न कर ।।
एक अन्य गीत में भी वेदना की ही अभिव्यक्ति मार्मिक आकार ग्रहण कर रही है। इसमें विशेषता यह है कि कवि को यह ज्ञात हो चुका है कि संसार निष्ठुर और संवेदना शून्य है । उसके आगे अपना दुखड़ा रोना उचित नहीं है। इसलिए वह विपदाओं में भी मुस्कुराने की बात कर रहा है:-
कटुता का अनुभव होने पर,
अन्तिम सुख-कण भी खोने पर,
आघातों से पा तीव्र चोट,
अन्तर्तम के भी रोने पर,
,
विपदाओं के झोकों से
विचलित तो नहीं हुआ करते।
मन ऐसा नहीं किया करते।
अपनी लेखनी से हृदय के कोमल उद्गारों को गद्य और पद्य में सशक्त अभिव्यक्त करने की क्षमता के धनी कविवर शंकर दत्त पांडे जी की स्मृति को शत-शत नमन।
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समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451