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24 Oct 2016 · 1 min read

‘ विरोधरस ‘—5. तेवरी में विरोधरस — रमेशराज

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कवि के रूप में एक तेवरीकार के लिये ऐसा सारा वातावरण मक्कारी, छल, फरेब, ठगई से बनता है, जो खुशियों के बजाय दुःख को जनता है। तेवरीकार ऐसे वातावरण को लेकर क्षुब्ध होता है और अपने मन में ऐसे आक्रोश को संजोता है जो तेवरी में विरोध-रस का परिपक्व बनता है-
खुदकुशी कर ली हमारे प्यार ने,
डस लिये हम आपसी तकरार ने।
-दर्शन बेज़ार, ‘देश खण्डित हो न जाए’, पृ-59

कुलटा और कलंकिन, निर्लज, बता-बता कर राख किया
हमने हर दिन अबलाओं को, जला-ला कर राख किया।
भूखे पेट रखा बिन पानी, सोने जैसी काया को
और इस तरह धन लोभी ने, उसे जलाकर राख किया।
-दर्शन बेजार, ‘देश खण्डित हो न जाए’, पृ.58

मयकदों में पड़े हैं गांव के मालिक,
हो गया बरबाद हर घरबार झूठों से।
-कृष्णावतार करुण, ‘कबीर जिन्दा है’,पृ.42
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
Tag: लेख
543 Views

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