Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Oct 2016 · 2 min read

‘ विरोधरस ‘—2. [ काव्य की नूतन विधा तेवरी में विरोधरस ] +रमेशराज

काव्य की नूतन विधा ‘तेवरी’ दलित, शोषित, पीडि़त, अपमानित, प्रताडि़त, बलत्कृत, आहत, उत्कोचित, असहाय, निर्बल और निरुपाय मानव की उन सारी मनः स्थितियों की अभिव्यक्ति है जो क्षोभ, तिलमिलाहट, बौखलाहट, झुंझलाहट, बेचैनी, व्यग्रता, छटपटाहट, अपमान, तिरस्कार से भरी हुई है। जिसमें स्थायी भाव आक्रोश है और आताताई अत्याचारी, अनाचारी, व्यभिचारी, बर्बर, निष्ठुर, अहंकारी, छलिया, मक्कार, धूर्त्त और अपस्वार्थी वर्ग के प्रति रस के रूप में सघन होता विरोध है।
कवि के रूप में एक तेवरीकार भी कवि होने से पूर्व इस समाज का एक हिस्सा है। इस कारण वह भी सामाजिक विसंगतियों, विकृतियों, विद्रूपताओं का शिकार न हुआ हो या न होता हो, ऐसा समझना भारी भूल होगी। इसलिए उसका गान [तेवरियां] आह, कराह, अपमान का व्याख्यान न हों, ऐसा कैसे हो सकता है।
कवि के आत्म [रागात्मक-चेतना] का विस्तार जब समूचे संसार की सत्योन्मुखी संवेदना बनकर उभरता है, तभी वह कविता की प्रामणिकता की शर्त को पूरा करता है। एक तेवरीकार का आत्म उस समूचे लोक का आत्म होता है, जिसमें नैतिकता, ईमानदारी और लोकसापेक्ष मूल्यवत्ता, भोलेपन और निर्मलता के साथ वास करती है।
एक तेवरीकार को हर अनीति इस हद तक दुःखी, खिन्न, क्षुब्ध, त्रस्त और उदास करती है कि जब तक वह उसे अभिव्यक्त नहीं कर लेता, वह बेचैन रहता है। अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए तेवरीकार कहता है-
आदमी की हर कहानी दुःखभरी लिखनी पड़ी,
बात कहनी थी अतः खोटी-खरी लिखनी पड़ी।
जब ग़ज़ल से पौंछ पाया मैं न आंसू की व्यथा,
तब मुझे बेज़ार होकर तेवरी लिखनी पड़ी।|
[दर्शन बेज़ार,‘देश खण्डित हो न जाए’, पृ. 17 ]
पीडि़त, दलित और शोषित वर्ग की व्यथा ‘तेवरी’ के सृजन का कारण इसलिए बनती है ताकि हर सामाजिक व्याधि से मुक्त हुआ जा सके। शोषक, बर्बर और आतातायी वर्ग के प्रति ‘तेवरी’ को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सके। यह तभी सम्भव है जबकि एक सामाजिक के रूप में पाठक या श्रोता द्वारा तेवरीकार के इस मंतव्य तक पहुंचा जा सके।
तेवरी, सामाजिकों को किस प्रकार और कैसी रसानुभूति कराती है, इसे समझने के लिए तेवरी में अन्तर्निहित स्थायी भाव के रूप में आक्रोश तक पहुंचने की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है जो विरोध-रस की रसानुभूति कराती है।
‘विरोध’ इस जगत में असंतुलन, अराजकता फैलाने वाले उस वर्ग के कुकृत्यों से उत्पन्न होता है जिसके थोथे दम्भ और अहंकार के सामने ये संसार क्रन्दन और चीत्कार कर रहा है। संसार का यह शत्रुवर्ग धूर्त और मक्कार होने के साथ-साथ सबल भी है और अपनी सत्ता को कायम रखने में सफल भी है। इसी के अनाचार और अताचार से सामाजिकों में विरोध उत्पन्न होता है |
——————————————————————-
+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ‘ से
——————————————————————-
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
Tag: लेख
249 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अच्छा ख़ासा तवील तआरुफ़ है, उनका मेरा,
अच्छा ख़ासा तवील तआरुफ़ है, उनका मेरा,
Shreedhar
राम हमारे श्याम तुम्हारे
राम हमारे श्याम तुम्हारे
विशाल शुक्ल
एक कुण्डलियां छंद-
एक कुण्डलियां छंद-
Vijay kumar Pandey
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
डॉक्टर रागिनी
मुक्तक...छंद-रूपमाला/मदन
मुक्तक...छंद-रूपमाला/मदन
डॉ.सीमा अग्रवाल
सोचा होगा
सोचा होगा
संजय कुमार संजू
दुख तब नहीं लगता
दुख तब नहीं लगता
Harminder Kaur
💐*एक सेहरा* 💐
💐*एक सेहरा* 💐
Ravi Prakash
*हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा मान है*
*हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा मान है*
Dushyant Kumar
मेरी शायरी की छांव में
मेरी शायरी की छांव में
शेखर सिंह
पिछले पन्ने 7
पिछले पन्ने 7
Paras Nath Jha
होता अगर पैसा पास हमारे
होता अगर पैसा पास हमारे
gurudeenverma198
4324.💐 *पूर्णिका* 💐
4324.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है दोस्तों यहां पर,
शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है दोस्तों यहां पर,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
गंगा ....
गंगा ....
sushil sarna
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के व्यवस्था-विरोध के गीत
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के व्यवस्था-विरोध के गीत
कवि रमेशराज
मां के आंचल में कुछ ऐसी अजमत रही।
मां के आंचल में कुछ ऐसी अजमत रही।
सत्य कुमार प्रेमी
दोस्तों बात-बात पर परेशां नहीं होना है,
दोस्तों बात-बात पर परेशां नहीं होना है,
Ajit Kumar "Karn"
#मुक्तक-
#मुक्तक-
*प्रणय*
जिन्दगी जीना बहुत ही आसान है...
जिन्दगी जीना बहुत ही आसान है...
Abhijeet
समझौते की कुछ सूरत देखो
समझौते की कुछ सूरत देखो
sushil yadav
You can't skip chapters, that's not how life works. You have
You can't skip chapters, that's not how life works. You have
पूर्वार्थ
इंसान तो मैं भी हूं लेकिन मेरे व्यवहार और सस्कार
इंसान तो मैं भी हूं लेकिन मेरे व्यवहार और सस्कार
Ranjeet kumar patre
तोड़कर दिल को मेरे इश्क़ के बाजारों में।
तोड़कर दिल को मेरे इश्क़ के बाजारों में।
Phool gufran
प्रबुद्ध लोग -
प्रबुद्ध लोग -
Raju Gajbhiye
टूटते सितारे से
टूटते सितारे से
हिमांशु Kulshrestha
नेता पक रहा है
नेता पक रहा है
Sanjay ' शून्य'
"ला-ईलाज"
Dr. Kishan tandon kranti
💐तेरे मेरे सन्देश-3💐
💐तेरे मेरे सन्देश-3💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
प्रीत ऐसी जुड़ी की
प्रीत ऐसी जुड़ी की
Seema gupta,Alwar
Loading...