‘ विरोधरस ‘—16 || विरोध-रस की निष्पत्ति और पहचान || +रमेशराज
तिरस्कार-अपमान-शोषण-यातना-उत्कोचन आदि से उत्पन्न असंतोष, संताप, बेचैनी, तनाव, क्षोभ, विषाद, द्वंद्व आदि के वे क्षण जिनमें अत्याचार और अनीति का शिकार मानव मानसिक रूप से व्यग्र और आक्रामक होता है, उसकी इस अवस्था को ‘आक्रोश’ कहा जाता है।
आक्रोशित व्यक्ति अत्याचार अनाचार शोषण उत्पीड़न कुनीति अपमान-तिरस्कार के संताप को एक सीमा तक ही झेलता है, तत्पश्चात वह अपने भीतर एक ऐसा साहस जुटाता है, जिसका नाम ‘विरोध’ है, जो काव्य में ‘विरोध-रस’ के नाम से जाना जाता है।
विरोध से घनीभूत व्यक्ति अपनी व्यथा से मुक्ति पाने को तरह-तरह के तरीके अपनाने लगता है। मान लो किसी मोहल्ले के निवासी विद्युत-आपूर्ति के अवरोध से बुरी तरह परेशान हैं। यह परेशानी उन्हें जब ‘आक्रोश’ से भरेगी तो वे बिजली-विभाग के कर्मचारियों-अधिकारियों को बार-बार कोसेंगे। उन्हें विद्युत-आपूर्ति के अवरोध से अवगत कराने हेतु पत्र लिखेंगे, फोन खटखटाएंगे। इस सबके बावजूद यदि उनकी समस्याओं का हल नहीं होता, तो वे विद्युत सब स्टेशन पर जाकर नारेबाजी के साथ उग्र प्रदर्शन करेंगे। अधिकारियों को खरी-खोटी सुनायेंगे। मौहल्लेवासियों का यह प्रदर्शन और नारेबाजी तथा अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाना ही उनके विद्युत-आपूर्ति अवरोध के प्रति ‘विरोध’ का परिचायक है।
गांधीजी का ‘नमक तोड़ो आन्दोलन’, ‘असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ या लाला लाजपत राय का ‘साइमन गो बैक’, भगतसिंह का विस्फोट के बाद संसद में पर्चे फैंकना आदि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने ‘आक्रोशित’ होकर अंग्रेजों के अनीति-शोषण-अत्याचार भरे तरीकों का डटकर विरोध किया।
कारखानों में होने वाली हड़तालें, सड़कों को जाम कर देना, थानों पर प्रदर्शन, जिलाधिकारी, एस.एस.पी. आदि के दफ्तर की घेराबंदी या वहां भूख-हड़ताल पर बैठना, ग्लोबन वार्मिंग के प्रति नग्न प्रदर्शन आदि व्यवस्था-विरोध के ऐसे विभिन्न तरीके हैं जिनका प्रयोग मनुष्य सदियों से करता आया है।
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630