विरासत में मिला अधूरा प्यार
विरासत में मिला अधूरा प्यार
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हो ही गया न प्यार
कितनी ही तो दफा मैं कहा था
मत कर मुझ से पहचान
बने रहना था सदा अन्जान
तुम नहीं मानी मेरी वो बात
कर ही ली मुझ से मुलाकात
सामने आए हमारे ज़ज्बात
मैं तो थी ही प्यासी नदिया सी
तुम बन कर बरसे बरसात
शीत शालीन शांत बूँदों की दी सौगात
भर गई मेरी खाली झोली
तेरे अनुराग भरे उपहारों से
तेरे नशीले नैनों के दीदारों से
खो गई तेरे ख्वाबों और ख्यालों से
बंध गई डोर मेरी तेरे अरमानों से
यौवन की भभकती अंगीठी में
तपने लगा मेरा यौवन उभार
सहा न गया मुझ से भार
सोनजुही सी बेल बन लिपटी इर्द गिर्द
मिला जब तेरे साथ का सहारा
शांत हुई प्रेमाग्नि की लपटें
सिमट गई , तुम जो बने मेरा साया
मान लिया था स्वेच्छा से तुम्हें हमसाया
पर होनी तो बलवान थी
मुझे कतई नहीं उसकी पहचान थी
वही तो हुआ , जिसका हमें भय था
तुममें छाया हुआ था नशा पूरा मय का
टूट गया तेरा किया मुझ से इकरार,करार
परिस्थितिवश हो गया हमारे बीच तकरार
लूट गया तेरे प्रति मेरा अटूट,अतुल्य पयार
शायद मेरे पास केवल यही शेष बचा था
सुखविंद्र विरासत में मिला तेरा अधूरा प्यार
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ु राओ वाली (कैथल)