विराट सुत- वीर श्वेत
धर्म की करने रक्षा कितने वीर चले,
त्याग अपने सुख कुरुक्षेत्र की राह चले,
रखने मान विराट का राजकुमार श्वेत चला,
कौरवो का कर संहार दिखाई अपनी कला,
जब सुना शल्य द्वारा उत्तर का मरण हाल,
टूट पड़ा शत्रु सेना पर बनकर काल,
कौरवो के भिड़ गये वीर रथी सात,
पर्वत की तरह निडर होकर लड़ा साथ,
कौसलराज, जयत्सेन,रुक्मरथ, सुदक्षिण,बिंद अनुबिन्द और जयद्रथ,
काट डाले सबके धनुष विध्वंस किये उनके रथ,
प्राणों को बचाकर भागे,
अब आये कौन आगे,
देख सेना का संहार, शल्य को बचाने भीष्म आये,
देख वीरता श्वेत की पांडव मन अति हर्षाये,
हजारों रथियो को मार डाला,
तीन बार भीष्म का धनुष काट डाला,
भाग गए कौरव सेना के रथी,
डटे रहे अकेले भीष्म महारथी,
हुआ बहुत चिंतित दुर्योधन,
देख शत्रु वीरता घबराया मन,
भीष्म ने किए दिव्य अस्त्रों का प्रयोग,
रथ विहीन होकर लड़ा आया ऐसा संयोग,
कवच फाड़कर शक्ति लगी उर में,
दो दो सुत खोए आज विराट ने,
पांडवो में छायी शोक लहर,
कौरव न भूलेंगे कभी ऐसा कहर,
धन्य धन्य वह वीर,
सुदेष्णा के आंखों का नूर,
।।जेपीएल।।।