“विरह”
मेरी कलम लिख रही, “विरह” मधुमास का,
मन मुरझाया, खिला फूल जब अमलतास का,
चली जब बसंती पवन,पलाशों सा मन दहका,
गमगीन कोयल भी गाये गीत मेरे विरह का ,
भवरें सी तान में खुले बंध कोपल कलियों का,
धड़कन में बजता गीत जैसे मन की हसरत का,
सासों में बजे लय घुंघरू सा खनकते दिल का ,
मन में घुटती आहें छेड़े राग जल-चातक का ,
फ़ागुन में बरसा जैसे लहू-रंग मेरे अरमानो का,
कसमसाने लगा मन सर्द हवा में ज़र्द पत्तों का,
विरह की गर्मी से झुलस गये पंख तितलीयों का,
खोजे मन वावरा रिमझिम सा मिलन सावन का !
सजन