विरह वेदना
हॆ लखन..तुम तो श्री राम से भी वज्र भावनाओं के निकले
माँ सीता के वियोग में श्री राम अधीर हो चले
खग मृग सभी थे साक्षी
हाय सीते –हाय सीते कहकर हो रहे थे विकल
मगर सौमित्र अंतर्मन तुम्हारा नहीं हुआ विहल….
नहीं कहा तुमने कभी…हाय उर्मिल..तुम बिन मेरा हृदय भी बोझिल…तुम बिन मेरा हृदय भी बोझिल..
बीना लालस