विरह वेदना की ज्वाला -रस्तोगी
विरह वेदना की ज्वाला
जो धधक रही थी बरसो से
व्यक्त कर रहा हूँ मै
कुछ शब्दों के माध्यम से
कोई ये न पूछे मुझसे
क्यों सहारा लिया शब्दों का
जब मिलता नहीं कोई सहारा
तब लेना पड़ता है शब्दों का
शब्द ही मेरे सहारे है
शब्द ही मेरी वाणी है
शब्दों के बिना कुछ नहीं
फिर तो वह मूक प्राणी है
शब्द ही वायु शब्द ही पानी
शब्द ही जीवन की कहानी है
शब्दो से ही कविता बनती
शब्द ही साहित्य की नानी है
आर के रस्तोगी