विरह भजन- कृष्ण का मथुरा प्रस्थान
न जाओ छोड़कर मोहन,ये राधा रह न पाएगी।
बहेंगे अश्रु आंखों से, अधर मुस्कान जाएगी।
हुई क्या भूल मुझसे जो, दिया है ग़म हमे गहरा।
हमारा छोड़कर गोकुल, कन्हैया क्यों चले मथुरा।
तुम्हारे बिन भला राधा, उमर कैसे बिताएगी।
बहेंगे अश्रु आंखों से, अधर मुस्कान जाएगी।
रुदन करते सभी ग्वाला,सिसकतीं गोपियां सारी।
दुखित हैं नंद जसुदा भी ,विकल हैं बाल नर-नारी।
बिचारी माँ जसोदा अब, किसे माखन खिलाएंगी।
बहेंगे अश्रु आंखों से, अधर मुस्कान जाएगी।
कदम पर बैठकर अब कौन, वस्त्रों को चुराएगा।
मधुर वंशी बजाकर कौन, मधुवन में बुलायेगा।
रचाया रास जो तुम सँग , वो बातें याद आएंगी।
बहेंगे अश्रु आंखों से, अधर मुस्कान जाएगी।
अकेला छोड़कर हमको, चले मथुरा को जाओगे।
भुलाकर भी हमे कान्हा, नही तुम भूल पाओगे।
हमारी धड़कने अब तो, विरह का राग गाएंगी।
बहेंगे अश्रु आंखों से, अधर मुस्कान जाएगी।
अभिनव मिश्र अदम्य