विरह/बसंत
(1)
विरह ताप से तप्त हृदय है लगता जीवन खार पिया ।
ऐसे में वसंत का आना लगता है अंगार पिया।
व्याकुल अंतस चातक नैना विकल अश्रु दिन रात बहे-
तृष्णा होकर तृषित प्यास में करती रही पुकार पिया।
(2)
कामदेव का शस्त्र हाथ में लेकर चले तुषार पिया।
सेज सुकोमल शूल चुभाते करें नहीं मनुहार पिया।
विरह पीड़ कैसे समझाऊँ जिस तन लागे वो जाने-
ऐसे में सावन भी सूखा पतझड़ लगे बहार पिया ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली