प्रणय गीत
छंद:-तंत्री(मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान:-कुल 32 मात्राएँ 8,8,6,10 पर यति अंत में गुरु-गुरु
सबसे पावन, सुखमय, प्रियवर, लगता नित ,संग तुम्हारा है|
उर की ज्वाला,शीतल करती, चंदन-सा ,अंग तुम्हारा है|
सदियों से ही, मैं तेरी थी, तू मेरा, प्रीतम प्यारा है|
मेरे मन के, इस आँगन में, अब तुम से, ही उजियारा है|
रोम-रोम में,साँस-साँस में,घुलता हर, रंग तुम्हारा है|
सबसे पावन, सुखमय, प्रियवर, लगता नित ,संग तुम्हारा है|
हाथ छुड़ा कर, कभी न जाना,तेरा ही,मुझे सहारा है|
जुदा हुए हो, जब भी दिलबर,हर दम ही, तुम्हें पुकारा है|
मेरे मन को,भाता केवल, करना ये,तंग तुम्हारा है|
सबसे पावन, सुखमय, प्रियवर, लगता नित ,संग तुम्हारा है|
मुझे बसा लो,मन मंदिर में,तुम बिन अब,नहीं गुजारा है|
तुम हो प्रियवर, नारायण-सा, शुभ लक्ष्मी, नाम हमारा है|
भरा प्रीत की, मधुशाला-सा, मनमोहक, ढंग तुम्हारा है|
सबसे पावन, सुखमय, प्रियवर, लगता नित ,संग तुम्हारा है|
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली