विरह गीत
***** विरह गीत *****
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छोड़ आई मैं घर परिवार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
लंबी है जुदाई तुम्हारी,
प्रेम किया है खता हमारी,
हुए चारों ओर बंद द्वार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
बांध सामान बैठी कब से,
चले गए अब तारे नभ से,
तुम्ही हो मेरा घर संसार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
कैसी उलझन में हो प्यारे,
तेरे बिना हम बे सहारे,
कर रही तुम्हारा इंतजार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
पगड़ी की है इज्जत रोली,
बिना फेरे संग तेरे हो ली,
मेरे हाल पर कर उपकार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
बीत जाएगी नेह की बेला,
विरह में मेरा मन अकेला,
सह न पाऊँ मैं अत्याचार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
प्यार में हूँ प्रेम दीवानी,
जैसे मीरा बनी मस्तानी,
समझने लगे हो हमे भार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
मनसीरत की आँखे सूखी,
मैं पगली प्रणय की भूखी,
हो ना जाए जग में प्रचार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
छोड़ आई मैं घर परिवार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)