विरह गीत ( हे प्रिय! अब तो आ जाओ तुम )
हे प्रिय !
घनघोर घटाएँ छा गई
आज नील गगन में
रिमझिम बरसे मेघा
ऋतु पावन सावन में
हर तरफ फैली हरियाली
सूखा पड़ा है मेरे मन में
खुशियों की हरियाली लेकर
हे प्रिय ! अब तो आ जाओ तुम।
सावन के झूलों ने
आज आवाज लगाई है
सखियों के चेहरे पर
मधुर मुस्कान छाई है
मेरा हृदय बुझा दीप सा
तेरी याद सताती है
बारिश की शीतल बूंदों ने
तपन हृदय की बढ़ाई है
अपने मधुर स्पर्श से भर दो
चेतना मेरे तन मन में
बहा दो सुगंध मन सुमन में
हे प्रिय ! अब तो आ जाओ तुम।
मोर पपीहा नाचे छम छम
बुझता जाए मेरा मन
करे ठिठोली सखियाँ मुझसे
कहाँ गया तेरा प्रीतम
रह रह आँसू बहे आँख से
भीग रहा मेरा दामन
बाहों का ये हार लिए
हे प्रिय ! अब तो आ जाओ तुम ।
निष्प्राण हो गई आज मैं
प्राण पियारे यहाँ नहीं
क्या जीना इस सावन में
जो प्रीतम का साथ नहीं
पथराई आँखों में भर दो
स्व स्नेह का अंजन
साँसों में साँसों से भर दो
नव जीवन का यौवन
हे प्रिय ! अब तो आ जाओ तुम