विरह की तड़प…
राधाजी की लगन प्यारी…
मीराजी की भक्ति न्यारी…
बांसुरी तो संग संग चले हैं तेरे…जग के जगमुरारी !
राधारानी के हर भाव में छलकती प्रीत की गगरियाँ
मीरा के तो हर भजन में छलकता रस भक्ति का..!
बांसुरी तो सूरसे गाती….
हर पुकार में ढूढ़ती हैं.. तुम को मुरारी..!..!
राधा का निर्दोश भाव प्रेमरस बिखेरता धरामें,
मीरा का हर भक्तिभाव जगाएं अखड़ ज्योति जहां में,
बांसुरी तो आज भी बजती हैं…!..!
कहती हैं…कहाँ हो मेरे सूर के रसीले काना…!!
राधा का विरह भी काना…
मीरा का भी विरह हैं काना…
बांसुरी को भी विरह हैं काना का…
तीनों की तड़प को..!..!..!
क्यों… करते हो नजरअंदाज मुरारी…