वियोग
वियोग।
इसका मिलन ही इलाज है,
है ये लाइलाज, दिल का रोग।
हैं बहुत से सहते इसे,सारी उमर
और लेते कुछ रिश्तों से जोग।
जो तड़पाता विरह की पीड़ा में
यही जुदाई बिछोह और वियोग।
करता अपनों को जुदा है यह
खुशियां अपार निगलता है यह
आंखों को करता सजल है यह
हर पल को करता बोझिल है यह
ज्यों अश्रु सरिता हो रही बह
हां आंखें भी हर पल यूं ही अविराम रहतीं हैं बह।
नीलम शर्मा