वियोग शृंगार युक्त दोहे
01
उत्तर भी दक्षिण लगे, पश्चिम लगता पूर्व।
परिवर्तन यह विरह में, देह हुआ जस दुर्व।।
02
बालम तुम जब से गये, लगी तभी से आग।
विरहा में जलती रही, रात – रात भर जाग।।
03
तिनके-सी दुर्बल हुई, प्रियतम मेरी देह।
तिनका है या देह है, साजन बिना सनेह।।
04
नयनों से झरते रहे, निर्झर जैसे नीर।
जब आवोगे साजना, तभी मिटेगी पीर।।
05
आप समझते क्यों नहीं, दिलबर मेरी बात।
वापस आओ लौटकर, नहीं गुजरती रात।।
06
राह ताकते हैं नयन, सुबह-शाम दिन-रात।
कैसे मुझको विरह की, दिए सनम सौगात।।
07
बोलो अब किसके लिए, करूँ रोज शृंगार।
वही नहीं है सामने,जिससे मुझको प्यार।।
08
तड़प-तड़पकर विरह में, बुरा हुआ अब हाल।
लगती है अंतिम घड़ी, आओ प्रिय तत्काल।।
09
चीनी भी फीकी लगे, भरा हृदय अवसाद।
विरहा में बीमार-सा, बदल गया है स्वाद।।
10
जैसे कोई वृक्ष से , पत्ती जाती टूट।
लगता वैसे आपसे, साथ गया अब छूट।।
11
विरहा में हल्का हुआ, तन मेरा लाचार।
मुझसे भी भारी लगे, आभूषण का भार।।
12
बहुत दवाई खा चुकी, फिर भी नहीं सुधार।
विरहा में मैं हो गई, प्रियतम अब बीमार।।
भाऊराव महंत
बालाघाट मध्यप्रदेश