विमोहा छंद
विमोहा छंद
212 212
हार में जीत है,यार से प्रीत है
जीत में हार है,प्यार का सार है
जिंदगी में कभी,जानलो ये अभी।
दूर होना नहीं, नेह खोना नहीं।
चाहते सेज दूँ,जो-क हैं भेज दूँ।
खूब आए मजा, शेष में है सजा
कामना कीजिये,सामना कीजिये
आसरा दीजिये,छंद को पीजिये
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मंथान छंद
221 221
भाभी गई छोड़,आया बड़ा मोड़।।
आँखें बहें रोज,लेना पड़े डोज।
छूटे सभी मोद, नाती तके गोद।
बोले बुला लायँ, दादी कहाँ पायँ।
कैसे धरूँ धीर, होती घनी पीर।
झूठे कहूँ बोल, पूरी खुले पोल।
श्यामा हुई वाम, होने लगी शाम।
छूटी जहाँ छांव, फोले पड़े पांव।